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अनेकान्त
[वर्ष १४
(ऋषभ) दास नामका पुत्र उप्पन हुधा था। लघु स्त्री इस पूजा-प्रन्थको प्रशस्तिमें दिया गया। जिसके सूचक दो कुसुम्भमती थी जिसके दो पुत्र थे। बड़ा पुत्र मोहनदास, पच इस प्रकार हैं: जिसकी पत्नीका नाम माथुरी था और दूसरा पुत्र 'रूपमा
मोही यस्य न विद्यते गुणनिधेस्तावत्परं दुःखदः गद, जिसकी भार्याका नाम भाग्यवती था। इन सबमें
संसारे सरतां न तस्य परमज्ञानाधिकस्यैव च । गरिष्ठ साहू टोडरने जो प्रसन्न बुद्धि था, प्रस्तुत ग्रन्थकी सोऽयं श्रीजिनराजपावनमतेभूयात् सदाचारिणः रचना कराई है।
श्रीमट्टोडर-भावकस्य सततंकल्याणमा-म्भकः ।।
स्वामीति जम्भवतां पुनातु शांति च कार्ति वितनोतु नित्यं यहाँ पर मैं इतना और भो प्रकट कर देना चाहता हूँ पासा-वरे वंशशिरोमणोनां श्रीटोडाख्यस्य गुणाकरस्य कि साह रोडरके लिखाये हुए जम्बूस्वामि-चरित्रको प्रशस्तिसे
इनमेंसे पहला श्राशीर्वाद प्रशस्तिके पूर्वका और यह मालूम होता है कि साहू टोडर अग्रवालवंशा गर्गगोत्री
दूसरा आशीर्वाद ग्रन्थकी समाप्तिके अन्तका है । इस और भटानिया कोलके निवासी थे। प्रशस्तिमें उनकी एक
ग्रन्थमें पूज के जो अप्टक जयमालादिके शुरूमें दिये हैं उनको ही स्त्री कंसूभीका नाम दिया है और उसके तीन पुत्र पुनः प्रशस्तिके पूर्व भी दिया गया है। अन्यकी पत्र-संख्या
नामादि प्रकट किये हैं। परन्तु यहाँ स्पष्ट रूपसे दो २०और श्लोक संख्या ८०. के लगभग है। यह ग्रन्थ-प्रतिस्त्रियों का नामोल्लेख है और ऋषभदासको जिसे यहाँ सं० १८७७ में वैशाग्बसुदि अष्टमीको जयदेव नामके अखिदास लिखा है पहली स्त्रीका पुत्र बतलाया है। जिसके महात्माके द्वारा जोबनेरम लिखी गई है और अजमेरके दोनों नामोंकी उपलब्धि पंचाध्यायीकी उस प्रतिसे भी पण्डित पन्नालाबने इस लिखवाया है। प्रति बहुत कुछ होती है जिसका परिचय अनेकान्तकी गत किरण नं. ३-४ अशुद्ध है और उसीका यह परिणाम है कि 'जम्बूस्वामिमें दिया गया है। उस प्रशस्तिमें रूपांगदकोचिरंजीवी लिखा पूजा समाप्ता' के स्थान पर 'इनियं जबूद्वीपपूजा समाप्ता' है और उसकी पत्नीका कोई नाम नहीं दिया, जिससे मालूम लिखा गया है । इसकी दूसरी प्रतिकी खोज होनी चाहिये होता है कि जम्बूस्वामि-चरितको रचनाके बाद चार वर्षकै और यह ग्रन्थ शीघ्र ही छपाकर प्रकाशित किये जानेके भीतर उसका विवाह हो चुका था, तभी उसकी स्त्रीका नाम योग्य है।
पीड़ित पशुओं की सभा
(श्रीमती जयवन्ती देवी) एक खेतमें एक किसान हल जोत रहा था। दस बीघा गजराजको सुशोभित किया गया। क्योंकि उम पर राजा जमीन जोत चुकने पर भी किसानने बैलोंको नहीं छोड़ा, साहब बैठ कर विवाहके लिये जा रहे थे, नाना प्रकारके
और अधिक चलानेके लिये बाध्य करने लगा। परन्तु बैलों- बाजे बज रहे थे, तरह-तरहके नृत्य हो रहे थे। हाथीका के पैर न उठते थे तमाम शरीर दिन भरके परिश्रमसे क्रान्त ध्यान आकर्षित हुआ और वह इधर उधर देखने लगा। हो गया था, भूख भी बड़े जोरसे लग रही थी, पर तभी पीलवानने उसके सिरमें अकुश लगा दिया। हाथी कृषकको दया न आई। स्वार्थ और लोभ जो सिर पर अस्त हो उठा और इन कर एवं कृतघ्न मनुष्योंकी प्रवृत्ति सवार था। वह डंडेसे पीटने लगा उस पर भी उन्हें चलते पर सोचने लगा। न देख उसमें लगी तीक्षण भार बैलकी कूखमें निर्दयता
आखिरकार एक दिन उसने अपने भाई सभी पशुपूर्वक घुसेड़ दी। बैल तड़प उठा, खूनकी धारा बड़े वेगसे पक्षियोंको एकत्रित कर एक सभा की । क्रमशः एकके बाद वह चली वह धड़ामसे पृथ्वी पर गिर पड़ा।
एकने अपना-अपना दु.ख कहना प्रारम्भ किया।-बैल ___ एक मदमस्त हाथी पर स्वर्णमय हौदा सजाया गया. बोला-क्यों जी, हम दिन रात अथक परिश्रम करके, बहुत कीमती कारचोबी कपड़ा श्रोढ़ाया, चांदीकी घंटी जमीन जोत कर अन्न उत्पन्न करते हैं जिसके बिना मनुष्य लटकाई और पुष्पहारोंसे तथा अनेक प्रकारकी चित्रावलीसे दो दिनमें तड़प जाता है और अन्तमें मर जाता है। फिर