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ॐ अहम
ततत्व-सघात
कोपाक
श्वतत्त्व-प्रकाशक
वार्षिक मूल्य १)
एक किरण का मूल्य 1)
HIREHEIRRBHBHI
नीतिक्रोिषध्वंसीलोकव्यवहारवर्तक-सम्यक् । परमागमस्यबीज भुवनकगर्जयत्यनेकान्त।
वर्ष १४ वीरसेवामन्दिर, २१, दरियागंज, देहली
मार्च ५७ किरण,
चैत्र, वीरनिर्वाण-संवत २४८३, विक्रम संवन २०१३ ऊर्जयन्त गिरिके प्राचीन पूज्य स्थान अजमेर शास्त्र-भण्डारके एक जीर्ण-शीर्ण गुटकेसे निम्न पद्य प्राप्त हुआ है, जिसमें उर्जयन्त गिरिकी कुछ विशेषताओंका उल्लेख है। इससे ऊर्जयन्तगिरिके इतिहाम पर कितना ही प्रकाश पड़ता है :
श्रीपच्चन्द्रगुहां वराक्षरशिला घस्रावतारं सदा, अर्चे चारणपादुकां वनगुहे सर्वामरैरचिंते । भास्वल्लक्षणपंक्रिनितिपथं बिन्दु च धयां शिला,सम्यग्ज्ञानशिलां च नेमिनिलयं वन्दे सशृङ्गत्रयम् ॥
. इसमें यह बतलाया है कि 'मैं चन्द्रगुफाकी, वगक्षर (मुन्दर लेख-मण्डित) शिला की, नित्य केशर वर्षावाले परोवरको, मर्व देवोंसे पृजित वन-गुहा (महनार-वनान्तर्गत गुफा) में स्थित चारण-पादुकाकी, दैदीप्यमान लक्षण-ममूहले निर्वनि-पथको दिखानेवाली नेमि-जिन-प्रतिमाकी, बिन्दुकी, धर्म्यशिला (धर्मोपदेशशिला की, मम्यग्ज्ञान-शिला (केवलज्ञानोत्पत्ति-शिला) की और तीन शिम्बरोंवाले नेमिजिनालयकी पूजा-वन्दना करता हूँ।
जिन दश स्थानोंका इसमें उल्लेख है, वे सब ऊर्जयन्तगिरि (गिरनार तीर्थ ) से सम्बन्ध रखते हैं और बहुत प्राचीन ऐतिहासिक स्थान हैं। चन्द्रगुहा वह चन्द्राकार गुफा है, जिसमें पहले श्रीधरसेनाचार्य जैसे महर्पियोंका भी निवास स्थान रहा है। 'भाम्वल्लक्षण-पंक्ति-
निति-पथं पदके द्वारा जिस नेमि-जिनकी प्रतिमाका उल्लेख किया गया है, यह वही पूर्वी टोककी प्रतिमा जान पड़ती है जिसके लिए विक्रमको दूसरी शताब्दीके विद्वान आचार्य स्वामी समन्तभद्र ने अपने स्वयम्भू-स्तोत्रमें 'तव लक्षणानि लिखितानि वत्रिणा वहतीति तीर्थ जैसे शब्दोंके द्वारा उल्लेख किया है। और साथ ही यह भी लिखा है कि आज भी चारों तरफसे ऋषिगरण प्रीति-भक्तिस पूरित हदयका लिए हुए इस नीर्थ पर सतत आते रहते हैं। इन स्थानोंमेंसे कितने ही स्थान कालके प्रभावसे आज नष्ट-भ्रष्ट हो गये हैं, कितने ही दुर्दशा-अस्त हैं और कुछ का पता भी नहीं हैं।
-जुगलकिशोर, युगवीर