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अनेकान्त
वर्ष १४
६. मेणि ॥
१. श्री [1] मिललैक् कुरंतु पानि-रिडै अर्थ स्वस्ति श्री। इस मठके अधिष्ठाता गुणसेनदेवरके २. यन वेलान सडैवनै चार्ति प्रधान शिष्य अन्दलैयान । कलक डीके अन्दलैयानने यह ३. इ (न् । ना माणवाड निट्टप्पुनाट्ट, ना.. पूज्य प्रतिमा बनवायी...... के लिए..के ... "कै
४. [क] र स (है) यप्प [न] सेदवित्त देयालि (2)
५. वर इ. तनत्त "ता"तायार [शेय] तमिल
६. दवित्त तिरुमेणि [u+] श्रमणगिरिमें पेच्चिपल्लमके पर्वतमें जो जिनमूर्ति है
अर्थः-इन्न माणव निपूनाडू जिलान्तर्गत नाकूरके उसमें इस प्रकारका लेख है
सडेयप्पनने यह पूज्य प्रतिमा बनवायी । मिजलै कुरम 1. श्री अच्चनंदि
(प्रांत) के पारूरके इडयन (ग्वाला) वेलान सडैयनके लिये। २. तायार गुणमति
यह पूज्य प्रतिमा · बनवायी गयी की मां। ३. यार शेयवित्
३ तमिल ४. त तिरुमेणि श्री [nx]
उसी स्थानमें जिनप्रतिबिंब रहनेकी जगहमें लेख इस अर्थः-श्री अच्चनन्दीकी मां गुणमतीके द्वारा बनवायी प्रकार हैहुई मूर्ति।
१. श्री [na] वेनबुनाह १. तमिल
२. निरुक्कुरण्डि उसी स्थानमें और एक जिनप्रतिमाके नीचे शिलालेख
३. पादमूलत्तान में जो समाचार हैं उनका विवरण इस प्रकार है:
४. अमित्तिन म ()१. स्वस्ति श्री [॥x] इप्पल्लिउडेय गु
१. कल कनकन (न् दि शे - २. णसेनदेवर साहन अन्दलयान
६. विच तिरुमेणि [us] ३. मलैतन मनाक्कन अचान श्री पालन
अर्थः-श्री बेनवुनाडु जिलाके तिरुक्कुरण्डिके पादमूल५. चमार्ति शेयवित्त तिरुमेणि (ux)
तान अमित्तिन मरेकल कनकनंदि-द्वारा पूज्य प्रतिमा बन अर्थः-स्वस्ति श्री इस मठके गुणसेनदेवके प्रधान
वायी गयी। शिप्य अन्दलैयानमलतनके दामाद (भतीजा) अचान
१४ तमिल श्रीपालके लिये बनवायी हुई मूर्ति । " तमिल
उसी चट्टानमें उपर्युक्त विग्रहके पास हो इस प्रकारका उसी स्थानमें तीसरी मूर्तिके नीचे दिखाई देने वाले . शिलालेखका विवरण इस प्रकार है:
१. स्वस्ति श्री [13] इप्प १. स्वस्ति श्री [@] इप्पल
२. ल्लि उदय गुण२. लि उडेय गुणसेनदे
३. सेनदेवर सट्टन ३. वर सट्टन सिंगडै
४. अरैयनकाविदि []४. प्पुरत्तु कण्डन ने (रि)
१. नगर्नबियच्चा५. वन शेयवित्त
६. ति शेयविच ६. तिरुमेणि श्री [ux
.. तिरुमेणि [४] अर्थ:-स्वस्ति श्री इस मठके गुणसनदेवके प्रधान
अर्थ-इस पल्लिके गुणसेनदेवरके प्रधान शिप्य अरैशिष्य सिगपुरके कण्डननरि भट्टारकने यह पूज्य प्रतिमा
यंगाविधि द्वारा बनवायी गयी पूज्य प्रतिमा संघनंदिके लिये। बनवायी।
१५ तमिल १२ तमिल
उसी पहाइमें पेच्चिपल्लम जैनशिलाके सामनेकी लाइनमें उसी स्थानमें चौथी जिनमूर्तिके नीचेका लेख इस इस प्रकार लेख अंकित है:प्रकार है:
1. स्वस्ति श्री [8] इप्पल्लि.