________________
किरण ५]
श्रमणगिरि चलें
१३५
-
-
समझ सका कि पर्वत तोडे जा रहे हैं या पत्थर । भारतके cal interest wers Explained by Dr. B. चरित्रको, तमिल देशकी कलाको, श्रमण-मुनियों के द्वारा Ch.Chhabra. Government epigraphist सेवित इतने बड़े धचिन्हको ही नष्ट-भ्रष्ट होते हुए देखकर for India, in an interview with a मेरा मन तड़फडाने लगा। मुझे अपार दुख हुआ और मैं representative of the Hindu to-day. उसी समय मद्रास लौट पड़ा।
"Some Jain inscriptions of about मद्राप पाते ही मैंने सीधे तमिलदेशके जैनियोंके नेता 10th century A. D. in Samanar Malai, तत्त्वज्ञानी रायबहादुर ए. चक्रवर्ती नैनार M.A.I.E.S. seven miles from Madura, had also से श्रमणगिरिके गौरवकी गाथाको कह सुनाया । उनको इसे come to the notice of the department मुनकर आश्चर्य और दुःख दोनों हुए । वे मुझे साथ लेकर he said, and added that steps were दक्षिण भारतकं अोरक्यालेजिकल डिपार्टमेंटके सुपरिटेन्डेन्ट being taken to prevent the quarrying श्री वी० डी० कृष्णास्वामीके पास गये । सुपरिटेन्डेन्टने of the locks there. The Place he दोनोंको बडे पादरक साथ बैठाया। मैंने श्रमणगिरिकी सब said, was an (curly Jain suttlement बात कह सुनाई। सुपरिटेन्डेन्टने भी इस प्रकारके ऐतिहासिक and there were Jain haus reliefs with चिन्होंक नष्ट किये जानेवाले समाचारको सुनकर दु.ग्व प्रकट inscriptions in Vatteluttu characters. किया। उन्होंने उसकी देखरम्ब करनेके लिये एक निवेदन-पत्र
Hindu 15-7-1949. लिखकर दनक लिये मुझे कहा । मैंने जो कुछ श्रमणगिरिक इस समाचारको पढ़ते ही खोई हुई वस्तुको पुनः प्राप्त बाग्में उस समय तक जाना था, तथा उसके प्रति जो कर लेने पर जैमी प्रसन्नता होती है वैसी ही मुझे भी हुई। अन्याय हो रहा था, वह सभी स्पष्ट रूपसे लिखकर एक अब पर्वतके प्रतिमा और शिलालेख सुरक्षित रहेंगे। निवेदन-पत्र दे दिया। श्रीचक्रवर्ती नैनारजीने भी इस पर डा. छाबड़ाके मतानुमः, वे प्रतिमाएं और गुफाएं ध्यान रखनेक लिये सुपरिटेन्डेन्टसे कहा। मुपरिटेन्डेन्टने भी ईसाकी दशवीं शताब्दीकी नहीं हैं। वे ईसाकी सातवीं एतिहासिक चिह्न-म्वरूप उम पहाड़की रक्षा करना हमारा शताब्दीके श्रारम्भकी या उससे पहलेकी ही होंगी। क्योंकि कर्तव्य है इसलिये शीघ्रातिशीघ्र मदुराक कलैक्टर के प्रधान नेडुमारनकालमें तिरुज्ञान संबंधके द्वारा चलाये गये मत. कार्यालयको लिखकर देखरेख करनेका वचन दिया। सम्बन्धी विवाद का वर्णन मच हो तो डा. छाबड़ा का मत
उसके बाद शिलालेख विशेषज्ञ डा. छाबडाने ठीक नहीं सिद्ध होता है । क्योंकि हजारों श्रमणों को फांसी श्रमणगिरिकी देखभाल करने के बारे में निम्नलिम्वित पर चढ़ने के बाद भी एक श्रमणका वहां जीता रहना, सुन्दर समाचार 'हिन्न' पत्रिका के सम्पादकके पास भेजने के लिए चित्रों एवं गुफाओंका निर्माण कर वहां पर तप करना कहा था। यह समाचार १५-७-४६ के हिन्दू पत्रिकामें थे असम्भवमा प्रतीत होता है। और भीगोलाकार अतरोंके अन्वे प्रकाशित हुए हैं।
पकोंका मत है कि ये ईसाकी २ या ७वीं शताब्दीके पहले उन्होंने लिखा है-मदुरा के पश्चिममें मात मोलकी के होनेका अनुमान लगाते हैं। डा. छाबड़ाके मतके अनुसार दूरी पर श्रमणगिरिमें खुद हुए दशवीं शताब्दीस सम्बन्धित ईसाकी दशवीं शताब्दीका सिद्ध किया जाय तो कई कुछ शिलालेखोंको, शिलालेखके अन्वेषकोंके ध्यानमें लाया अन्वेषकोंक मतानुमार निरुज्ञानसंबंधरकी कथा साकी गया है और वहांक चट्टानोंको बिन तोड़े रहनेके लिए इंतजाम १०वीं शताब्दीकी हो सकती है। किया जा रहा है। उपयुन स्थल पवित्र श्रमणोंका मूल ऊपर कहे अनुसार उसी सातवीं शताब्दीमें हमारे स्थान है इसके बारेमें जाननेके लिए गोलाकार अक्षरके देश में पाये तीन यात्रियोंने तमिल देशकी विशेषताओंके शिलालेग्व पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हैं। उनका पत्र भी आया वर्णनके सिलसिले में तिरुज्ञानसंबंधरके बारेमें कुछभी नहीं था। वह निम्न प्रकार है:
लिखा । उसके बदले में जैनधर्म और बौद्धधर्म दोनों ही Madras July, 14 तमिल देशमें बहुत उम्मत दशामें थे ऐसा लिखा मिलता है। Recent discoveries of archaeologi- दरअसल दशवीं शताब्दीके बाद ही जनधर्मकी दशा कुछ