________________
किरण ५] विश्व-शांति के साधन
१४३ में, एवं राष्ट्र राष्ट्रको भस्मसात करनेकी चिन्ता किसीके धन-पर लालच मत करो। तथा प्रयत्नमें संलग्न है अण एवं उदजन जैसे धमों इन दिव्य-दृष्टि ऋषियोंने कितने अधिकारके का आविष्कार म्पष्टरूपसे सिद्ध कर रहे हैं कि आज
साथ कहा था:मानव संग्रह तथा अधिकार वृत्तिकी पराकाष्ठा पर
१--मोघमन्यो विन्दते अप्रचेताः सत्यं व्रबीमि पहुँच कर किस प्रकार विश्व-विनाशकी दानवीय
वध इत् सतस्य । लीलाका सृजन कर रहा है।
२-नार्यमर्ण पुध्यति नो सखायं केवलापी मानवताके उपासक तथा शान्तिके पुजारीके
भवति केवलादी सः। ऋग्वेद १०.११७. ६ लिये व्यष्टि, समष्टि एवं विश्वका यह अशान्त
मैं सच कहता हूँ कि जो स्वार्थपूर्ण उत्पादन वातावरण गंभीर चिताका विषय बना हुआ है,
करता है वह स्वयं उत्पादक का वध करा देता यद्यपि आधुनिक यान्त्रिक युगके पहले भी इसी भाँति
है तथा जो व्यक्ति अपने धनको न धर्म में मानव-जीवनम अनेक प्रकारकी जटिलताओं और लगाता है न अपने मित्रको देता है, जो समस्याओंने प्रवेश कर असन्तीप और अशान्तिका
केवलादी है अर्थान् ; केवल अपना ही वातावरण उत्पन्न किया और तदनुरूप समय-समय
पेट भरता है वह केवलाद है, अर्थान् केवल पर अवरित महात्माओंने उनके समाधान करने- पाप ही खाता है। का प्रयत्न किया, फिर भी आधुनिक युगकी भांति
उन्होंने तत्कालीन समाजके सामने त्यागका विपमता और निगशा इतिहास में कम ही देखने सुन्दर श्रादशे उपस्थित किया थाको मिलती है।
शत-हम्तः समाहर, सहस्र हस्तः संकिर । इतिहास हमको यह बतलाता है कि संसारमें
अथव ३-२४५: जब कभी अशान्ति और निराशाका वातावरण
सैकड़ों हाथों से इकट्ठा करो और हजारों हाथों फेला तब विश्ववंद्य विभूतियोंने जन्म लेकर अहिसा से बाट दा। एवं मत्य की माधनासे शान्ति-प्राप्तिका मार्ग प्रदर्शित
अथर्व वेद के ब्रह्मपिने कितनी सुन्दर व्यवस्था
की थीकिया भगवान ऋषभदेव ऐसी ही विभूतियों मेंसे समानी प्रपा सह वोन्भागः समाने यात्रे। थे जिन्होंने मवप्रथम अहिसा, अपरिग्रह एवं
अथव० श.६६ सत्यशीलके दिव्य सन्देश द्वारा तत्कालीन व्याप्ट
तुम लोगोंका पानी समान हो, तुम्हारा एवं समष्टिगत अशान्तिको दूर करनेका प्रयत्न खाद्यान्न समान हो, तुम सबका समान बन्धनमे किया और आत्मस्वातंत्र्य-प्राप्तिक मागेका प्रशस्त बांधता है, और तुम एक दुसरेके साथ सम्बद्ध रहा। किया।
मध्य युगमे भी भगवान महावीर, बुद्ध, ब्रह्म-वर्चस वैदिक ऋपियांने भी अपने समयकी ईमा. हजरत महम्मद तथा शंकराचार्य जती समाज-व्यापी अशान्तिको दूर करनेका उपदेश विभांतयोंने समय २ पर हिमा, अपरिग्रह, अनेकांन दिया और अहिंसा अपरिग्रह तथा तथा सत्य जैसे तथा विश्व-मैत्री जैसे अमाघ साधनांसे मानव
आदर्शोको ही सामाजिक शान्तिका मूल मन्त्र माना। जीवन में एक्य और शान्ति का प्रतिष्ठित करनेके उन्होंने स्पष्ट शब्दोंमें स्वीकार किया--
पुण्य प्रयत्न किये। आधुनिक युगमें भी राष्ट्रपिता १- सत्यम्य नावः सुकृतपिरन, ऋग्वेद महात्मा गाँधी ऐसे महापुरुष हुए जिनको हम सबने १-७३-१ | सत्यकी नाव ही जीवात्माको पार अपनी ऑखांसे देखा और जिन्होंने अहिंमा एवं लगाती है।
सत्याग्रहके मार्गसे न केवल शताब्दियोंक पराधीन २-मा जीवेभ्यःप्रमदः । अथर्ववेद-जीवांके भारतको स्वातंत्र्य लाभ कराया, अपितु विश्वकी प्रति प्रमादी मत बनो,
उत्पीडित जनताको भी शाश्वत शान्तिका मंगलमय ३-मागृय : कम्यस्विद । धनमः। यजु०४०.१. मार्ग प्रदर्शित किया।