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अजमेरके शास्त्र-भण्डारसे
पुराने साहित्यकी खोज
[ जुगलकिशोर मुख्तार, 'युगवीर']
११. प्राकृत-छन्द-कोश दोहा दोधक, १८. इंसदोधक, १६. सोरठा, २०. चूलिकायह प्राकृत छन्दोंका, जिनमें अपभ्रंश भाषाके छन्द भी दोहा, २१. उपचूलिका दोहा, २२. उग्गाह दोहा, २३. शामिल हैं, एक सुन्दर कोश है, जो उन भट्टारकीय शास्त्र- रसाकुल. २४. स्कधक-दण्डक, २१. कुण्डलिया, २६. भण्डारके एक गुटकसे उपलब्ध हुआ है। इसको पत्र-संख्या चन्द्रायण, २७. बेराल, २८. राढक, २६. वस्तु, ३०. दुबई १०(२२ से ३७) और पद्य-संख्या ७८ है। प्रस्तुत ग्रंथ- (द्विपदी), ३१. पद्धडी, ३२. चौपई, ३२. कुण्डलिनी, १४. प्रतिके अन्तमें यद्यपि पद्य-संख्याङ्क ७२ दिया है परन्तु वह चन्द्रायणी, ३५. लघु चौपई, ६. अडिल्ल, ३७. भिन्न पद्यों पर संख्याक डालनेकी कुछ गड़बड़ी श्रादिका परिणाम अडिल्ल, ३८. घत्ता, ३६. मेहाणी, ४०. महामेहाणी, ४१. है । यह प्रति कुछ अशुद्ध लिखी होनेसे इस बातकी ज़रूरत नाराच (प्रकारान्तर), ४२. एकावली ४३. चूडामणि, ४४. पड़ी कि इसकी कोई दूसरी प्रति मिलनी चाहिये, जिससे मालती, ४५. पद्मावती, ४६. गाथा (गाथाभेद-)४७. विप्री, प्रतिलिपिका कार्य टीक बन सके । खोज करने पर भाग्यसे ४८. छत्रिणी, ४१. वैश्यी, १०. शूद्री, ५१. पथ्या, १२. एक दसरी प्रतिका और पता चला, जो कि जयपुरके दि. विपुला, ५३. चपला, ५४. मुखचपला, ५५. जघनचपला, जैनमन्दिर पं० लूणकरणजीके शास्त्रभण्डारमें है और ५६. विगाहा-विपरीता, ५७. गीति, ५८. उपगीति, ५६. इसलिये मैं स्वयं जयपुर जाकर पं० कस्तूरचन्द्र जी M.A. प्राहिणी। की कृपासे उसे प्राप्त कर लाय।। जयपुरकी प्रति शास्त्रा- इन छन्दास कितने ही छन्दोंके लक्षणों में उनके कारमें ६ पत्रों पर लिखी प्राय. शुद्ध और मन्दर है. जहां निमोता कवियकि नाम भी दिये हैं. जैसे नागेश-पिंगल. गल कहीं कुछ अशुद्ध है उसका संशोधन अजमेरकी प्रतिसे हो अल्ह, अर्जुन, गोसल । इन कवियोंके नामादि-सूचक कुछ जाता है। जयपुरी प्रतिक अन्तमें यद्यपि पद्यसंख्या ७७ वाक्य नमूनेके तौर पर निम्न प्रकार हैं:पड़ा है, परन्तु वह भी दो पद्यों पर ३८ वां अंक पड़ जानेकी
रायाणं ईसणं उत्तो... 'एसो छदो सोमक्कतो (४) गलतीका परिणाम है। यह प्रति भाषाकी दृष्टिस 'य' के २ छंदपि मैणाडलं अल्ह जंपेइ। (१) स्थान पर 'अ' तथा 'इ' के प्रयोगादिकी कुछ विशपताओंको ३ णारायणाम सोमवंत गोसलण दियो (१५) लिये हुए हैं, जिनका प्रकटीकरण ग्रन्थक सम्पादन तथा प्रका- ४ चूलियाउ नं बुह मुणउ गुल्ल्ह पर्यपह सम्व-. शनके अवसर पर हो सकेगा। अस्तु ।
सुपहा (२६) इस ग्रन्थमें प्रायः छन्द-नामके साथ प्रत्येक छन्दका रतं दुवईय छंदु सुह लक्खण अज्जुण-सुकइ बद्धो(३५) लक्षण उसी छन्दमें दिया है जिसका लक्षण प्रतिपादन इस ग्रन्थमें ग्रन्थकारने अपना कोई नाम नहीं दिया करना था, और इस तरह उदाहरण के अलगसे देनेकी ज़रूरत और न ग्रन्थ-रचनाका समय ही दिया है । इससे ग्रन्थकारनहीं रक्खी गई, साथ ही छन्दशास्त्रक गणादि-विषयक कुछ का नाम और रचना-समय दोनों ही अभी अज्ञात हैं । जिन नियमादिक भी दिये हैं। जिन छन्दोंके लक्षण इसमें दिये गुल्ह, अल्ह, अर्जुन और गोसल नामके कवियोंका इसमें गये हैं उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं:
उल्लेख है उनकी कोई रचनाएं अपने सामने नहीं हैं और १.सोमकान्त, २. दोधक, ३. मोतियादाम, ४. प्रोटक न उनके समयका ही कुछ पता है। यदि उनमें से किसी५. यतिबहुल ६. भुजंगप्रयान, ७. कामिनीमोहन, ८. मैना- का भी समय मालूम होता तो यह निश्चय-पूर्वक कहा जाता कुल, .. छप्पय, १०. रोपक, 11. नाराच, १२. डुमिला, कि यह ग्रन्थ उस समयके बादका बना हुआ है। प्राशा है १३. विहान, १४. गीत, १५. विजय, १६. फुटवेसर, १७. उन कवियोंकी कोई कृति सामने आने पर इस विषयका
उपका