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११] अनेकान्त
वर्ष १४ गया। पहले प्रात्म-हित करो, फिर पर हित करना चाहिए। बनाया और हम कहने लगे कि इसमें यह नहीं, इसमें वह पाप सबने भारम-हित छोड़ दिया है, सब पर-हित में नहीं है। यह ऐसा नहीं है, यह वैमा नहीं है। पहले उसका मग्न हैं।"
अध्ययन करके देखो-जीव क्या है, कर्म क्या है। कर्मको "जब आपके पास है ही नहीं, तो बाप दूसरेको क्या दे प्रबग करनेका क्या उपाय है फिर सत्य और असत्यका सकते हैं। पहले अपना हित करो। जब तुम्हारे पास कुछ विवेक करके कि यह हेय है, यह उपादेय है यह लेना है, होगा, तभी पर-हित कर सकते हो । यदि मापके पास पैसा यह छोहना है. ऐसा विचार करनेसे विवेक जागृत होगा। है, धन है, तो इसको दे सकते हो। अगर तुम्हारे पास उस समय ही तुम शास्त्री कहनाभोगे । उसीको शास्त्री अब है ही नहीं, तो दूसरे क्या दोगे पर-हित कैसे कर कहते हैं, उसीको पण्डित कहते हैं। सकोगे। अतएव पहले अपना ऐश्वर्य पाने के लिये उयत
(११२५ के प्रवचनसे) रहो, प्रयत्न करो।" - सच्चा मुनीम कौन ?
कमाया बहुत, अब कुछ गमाना भी सीखो आप लोग सेठ हैं। पर वस्तुकी रक्षा करनेके लिए यदि ।
बहिरान्मा पापकर्मको निर्भय होकर करता है । कल क्या मुनीम रख दिया, उसने मार्ग देखा नहीं, चलेगा कैसे ? मार्ग
होगा, कैसा होगा ? यह नहीं सोचता और यह समझता है
कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ, ठीक ही कर रहा हूँ। धन मेरा बताओ तो चलेगा। जैसा चापका मुनीम है, उसी तरह यह
है धन मेरी रक्षा करता है। मैं भी उसकी रक्षा करूं । इसी(अपनी ओर संकेत करते हुए) धर्मका मुनीम है। अधर्मको
में अनन्तकाल बीत गये मिथ्या भाषमें | xxx अब प्राचार्य निकाल कर धर्मका मार्ग रखे, वह धर्मका मुनीम है। पर
कहते हैं कि अनादिकाल बीत गये, पापकर्म नहीं छोड़े। पदि वह तुम्हें अधर्म पर चलाए और कहे--पगार (भाहार
अब भैया, थोड़े दिनके लिए अशुभ कर्मोको छोड़ दो। यह रूपी वेतन)हाम्रो सो वह मुनीम नहीं है। जो मुनिके
स्थिर रहने वाला नहीं है। अगर स्थिर रहने वाला है तो समाषअलिप्त रहे, अलिप्त रह कर ही सेठका काम
करो। पर वह तो नाश होने वाला है । भैया, छोड़ दो करे, वही मुनीम है।
उन्मार्गको, सन्मार्गको प्राप्त करो । खाना, कमाना यह तुमने साधुको पगार दिया और उसने तुमको धर्म
सांसारिक मार्ग है। अब बहुत कमा लिया. कुछ गमाना दिया। दातार हो तुम, मैं तुम्हारा नौकर हूँ, मुनीम हूँ। भी सीख लो। गमाना क्या है। सुबह उठ कर जिनेन्द्रकाम लो भैया, कर्मको निकालनेका और धर्मको धारण कर-
कर का नाम लेना, पूजन करना, दान देना आदि । यही शुभ
नेता जिन नेका काम लो। नहीं तो
कम हैं। अब शुभ कर्मों में व्यवस्थित होत्रो। जब तक यह 'लोभी गुरु लालची चेला, दोनों नरकमें ठेलमठेला।'
नहीं करोगे, तब तक अशुभ कर्म छूटते नहीं। अगर आप सच्चा मुनीम स्खेंगे, तो आपकी नाव पार हो सकती है।
साधुभाव क्या है ? (१२५ के प्रवचनसे) इन पाप-पुण्योंसे संसारमें सुख-दुख ही मिलता है। सब कुछ स्या ?
पाप करनेसे दुख और पुण्य करनेसे सुख । इसलिए पाप संसारमें सब कुछ पा लिया, अब एक बाकी रह गया। और पुण्य दोनोंका ही बन्दीगृह-जेलखाने-से सरोकार है। वह चीज पाना है । जिसने अपने पात्मज्ञानको प्राप्त कर दोनोंको ही जेलखानेमें रहना पड़ता है। साधु भाव यहां तक लिया, उसने सब कुछ पा लिया । मुम्बक बोहेको अपनी नहीं है । साधु भाव वहीं है, जो पापके समान पुण्यका भी
ओर खींचता है, सूर्य आग पैदा कर देता है । इसी तरह त्याग कर दे। वही साधु है, वही मोक्ष है। जीवन में इतनी शक्ति होनी चाहिए. मात्मा सना शान xox जब तक संसार है, साधुभाव नहीं, शुद्धभाव होना चाहिये कि यह कर्मको फेंक दे और आत्म-शक्तिको नहीं । इसलिए शुभ-अशुभ भावोंको तिलांजलि दे दो। खींच।
शुद्धभाव ही प्रास्माको शुद्ध करनेका कारण है। शास्त्री और पण्डित कौन ?
शुद्ध या मुक्त होनेका मार्ग क्या है? शास्त्रके बनाने वालेचे कितनी युक्तियोंसे इस शास्त्रको बह पाप-पुरुष अनन्तकालने मामाको दुःखमें डालने