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नर
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अनेकान्त
[वर्ष १४ सेवन किया, जिससे वह पुनः रुग्ण हो गया । अब- अच्छा पैसा प्राप्त कर लिया, किन्तु उसके बाद वे की बार उसके शरीरसे दुर्गन्ध और पीव आने अपनी प्रतिज्ञा भूल गए और पुनः वे जुआरियोंलगी। वह पुनः बावाजीके पास दौड़ा गया, और के पास बैठने लगे। निदान उसी समयसे उनकी दीनवृत्तिसे प्रार्थना की, परन्तु बाबाजीने उससे सम्पत्ति भी कम होती गई, और अन्त में वे उसी स्पष्ट शब्दोंमें कह दिया कि तेरा इलाज तेरे ही अवस्थामें पहुँच गए। पास है, मैं कुछ नहीं कर सकता, तुम यहाँ से चले बड़ौतके पास किसी एक ग्राममें प्रतिष्ठा महोत्सवजाओ।
का कार्य सम्पन्न हो रहा था। उसमें चार हजार पहाड़ी धीरज पर ला कुवरसैनजी रहते थे, जनतामें लड्डुओंके बांटनेके लिये व्यवस्था की गई पहले वे सब तरहसे सम्पन्न थे, किन्तु कुछ वर्षोंके थी, किन्तु दैवयोगसे जैन जनता दस हजारसे भी बाद असाताके उदयसे सम्पा.का अभाव होगया, कुछ अधिक आगई थी । ऐसी स्थितिमें प्रबन्धकोंकी तब वे आजीविकाके निर्वाहार्थ जुआरियों के पास बड़ी चिन्ता हुई, और वे बहुत घबड़ा गए, तथा बैठने उठने लगे, उससे उन्हें जो थोड़ीसी आय हो किंकर्तव्य विमूढ़से हो गए । इसी कारण वे सबके जाती थी उसीसे वे अपना निर्वाह करते थे। वे भी सब बाबा लालमनजीके पास दौड़े गए, और उन्हें बाबाजीके पास पाया जाया करते थे, जब बावाजी नमस्कार कर निवेदन किया कि महाराज! जनको यह ज्ञात हुआ कि वे जुआरियोंके पास उठते समूह कल्पनासे अधिक आगया है, अब निर्वाह बैठते हैं, तब एक दिन बाबाजीने उनसे कहा कि कैसे होगा ? इतना प्रबन्ध तो इतनी जल्दी होना लुम जुआरियोंके पास उठना बैठना छोड़ दो, तब संभव नहीं है । और यदि प्रबन्ध नहीं होता है तो उन्होंने अपनी सारी स्थिति बाबाजीसे बतलाई, लोक हँसाई और बदनामी होगी, एवं उससे जैन
और कहा कि ऐसेमें उसे कैसे छोडूं। तब बाबाजीने धर्मको भी ठेस पहुँचनेको संभावना है । इस कारण कहा कि यह कार्य अपनी कुलमर्यादा और धर्मके हम आपसे सादर निवेदन करते हैं कि महाराज ! विपरीत है इसे अवश्य छोड़ देना चाहिये। उन्होंने अब हमें केवल आपका ही सहारा है, आप ही उसका नियम ले लिया, उनके नियम लेनेके बाद हमारी नैयाको पार लगा सकते हैं। बाबाजीने उनसे कहा कि तुम रोजाना लाल किलेके पास कहा कि आप लोग चिन्ता मत करो। धर्मके चिंटियोंको आटा डाल आया करो। चुनांचे वे प्रसादसे सब कार्य पूरा होगा। किन्तु जैसा मैं कहूँ प्रतिदिन चिटियोंको आटा डालनेके लिये लालकिले उसके अनुसार ही प्रवृत्ति करते जाओ। उन्होंने के पास जाया करते थे, उस समय उन्हें दो दिनका एक कपड़ा मंगवाया और उस पर उन्होंने एक फाका भी करना पड़ा । किन्तु तीसरे दिन दरीबा- मंत्र लिख कर दिया और कहा कि यह कपड़ा जिस
में काजी मुहम्मद हुसैनखां सब जजके सरिश्ते- वर्तनमें लड्डू रक्खे हैं उस पर ढांक दीजिये और दार ला० मन्नूलालजीके पास एक आदमी पाया और एक व्यक्ति नहा धोकर शुद्ध वस्त्र पहिन कर उसमेंउसने कहा कि आपके पास अमुक आदमीका एक से लड्डू निकाल कर देता रहे। चुनॉचे ऐसा ही मुकदमा है। और मैं ये सौ रुपया देता हूँ, उन्हें किया गया । और दश हजारसे अधिक व्यक्तियोंको आप ला० कुवरसैनजीको दे देना । ला० मुन्नालाल लडडू बराबर बाँटे गए, परन्तु वे फिरभी बचे रहे। जी ने रुपया ले लिया। और जब आफिस में आए तब बाबाजीने कहा कि और जो कोई रहा हो उन तब मुकदमोंकी लिस्ट देखो और उसमें उस आदमी सबको बांट दीजिये। इससे लोगोंको आश्चर्य का नाम तलाश किया, किन्तु वह नहीं मिला। हुआ और बाबाजीमें विशेष श्रद्धा हुई। परन्तु जब कुंवरसैनजी मिले, तब उन्हें बह रुपया दे बाबाजीका निवास दिल्लीमें बहुत अर्से तक दिया गया। उन्होंने सौ रुपया लेकर उससे बूरा रहा । धर्मपुराके नये मन्दिरजीकी धर्मशाला तथा बेचनेकी दुकान खोली, उससे १५-२० वर्षों में उन्होंने सेठके कूचेकी धर्मशालामें तो वे अन्तिम