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वष १४] श्री बाबा लालमनदासजी और उनकी तपश्चर्याका माहात्म्य समय तक भी रहे। और वहाँ रहते हुए तपश्चर्या गई थी। इन्हीं सब कारणोंसे बाबाजी अल्पज्ञानो का अनुष्ठान करते हुए अपना समय धर्म-ध्यान में होते हुए भी एक साधक सन्तके समान थे। जब व्यतीत करते थे। वे कुछ समय पहाड़ी धीरज पर कभी कोई व्यक्ति उनसे प्रतिज्ञा न लेनेके लिए भी रहे हैं और नये मन्दिरजीसे भी पहाड़ी धीरज किसी वजहसे असमर्थ होकर निवेदन करता, तब आते जाते रहे हैं। जब वे पहाड़ी धीरज पर बावाजी उसे दबाते और धमका कर भी धर्मजाते थे तब राजवैद्य शीतलप्रसादजीसे मन्दिरजी भावनासे प्रेरित हो प्रतिज्ञा लेनेके लिये कहते।
जरूर सुनते थे। उनसे उन्हें कुछ अनुराग और यह भी कह देते थे कि भाई यदि त भी था। एक बार बैद्यजी बीमार हो गए, उससे प्रतिज्ञा नहीं लेगा तो मैं स्वयं आहार-पानीका त्याग काफी कमजोर हो गए। उनमें उठने बैठनेकी भी किये देता हूँ। तब वह भयसे स्वयं प्रतिज्ञा ने विशेष क्षमता न रही, दैवयोगसे उन्हीं दिनों लेता था। पर ऐसा कहने पर भी बाबाजीके हृदयमें बाबाजी पहाड़ी धीरज पहुँचे, और उन्होंने वैद्यजी कोई रोष नहीं होता था। किन्तु करुणा और को बुलवाया, तब उन्हें मालूम हुआ कि वैद्यजी परहितकी भावनाका प्रबल उद्रेक ही उसमें विशेष सख्त बीमार हैं । उनसे उठा नहीं जाता और न कारण था । चल फिर ही सकते हैं, इसलिये इस समय आनेसे अन्तिम जीवन और समाधिमरण मजबूर हैं । यह सुन कर बाबाजी उस दिन तो वैसे ही लौट आये; किन्तु अगले दिन पुनः पहाड़ी इस तरह बाबाजीसे अपनी श्रात्म-साधनामें पर गए और वैद्यजीको बुलानेके लिये आदमी जो कुछ भी उनसे बन सकता था उसे सोत्साह भेजा। आदमीने जाकर वैद्यजीसे कहा कि बाबाजी करते रहे । अन्तिम समयमें दो दिन पूर्व उन्हें यह ने आपको अभी बुलाया है, उन्होंने कहा कि इस मालूम हो गया कि परसों अमुक समय पर तेरी समय तबियत खराब है कैसे चलू। तब उस आदमी- देह कूटने वाली है, अतः उन्होंने पंडित संसारचन्द्रने कहा कि बाबाजीने कहा है कि उन्हें किसी तरहसे जीको बुला कर उनसे कहा कि भाई परसों अमुक यहाँ अवश्य ले आओ । चुनांचे वैद्यजीको डोलीसे समय पर मेरी मृत्यु होगी। अतः मन्दिरों के ले गए । वैद्यजी मन्दिरजीके पास डोलीमेंसे उतरे निर्माणका जो कार्य चल रहा है उस विषय में जो और बाबाजीसे मिले । मिलते ही वैद्यजीकी तबियत मेरी जानकारी है उसे नोट करलो जिससे मैं स्वस्थ-जैसी ऊँचने लगी। वैद्यजीने बाबाजीको शास्त्र निःशल्य हो जाऊँ। चुनांचे पंडितजी ने ऐसा ही पढ़कर सुनाया । उसके बाद जब वे घर गए तब किया । और बाबाजी अपने में सविशेष रूपसे स्वस्थ होकर पैदल ही गए और उस दिनसे उनकी सावधान हो गए और आज से कोई ४० वर्ष पूर्व . तबियत बिल्कुल ठीक हो गई।
सं०१६ ३ में उन्होंने अपने शरीरका परित्याग इन थोड़ी सी घटनाओं परसे जहाँ बाबाजीकी कर देवलोक प्राप्त किया । तपश्चर्या, आत्म-साधना और जिन-धर्म पर उनकी बाबाजीक सम्बन्धमें पाठकोंको जो कुछ नवीन निर्मल दृढ़ प्रगाढ़ श्रद्धाका मान होता है, वहाँ उनकी घटनाएँ और जीवन-सम्बन्धी बातें ज्ञात हों, उन्हें अन्तर निर्मल परिणतिका भी स्पष्ट आभास हो लाला प्रकाशचन्द्र शीलचन्द्रजी जौहरी चाँदनी चौक जाता है। उन्हें तपकी शक्तिसे वचनसिद्धि प्राप्त हो देहलीके पते पर भेजनेकी कृपा करें।