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अनेकान्त
[वर्ष १४ हो गई होगी। कहने लगा-सुमुखि ! मुझे क्षमा उसने ऐसा ही किया. ध्यानमुद्रामें लीन उस करो और जल्दी बताओ, उदास क्यों हो ? अगर आदमीके सामने हारको रखकर भाग गया। मनुष्य आपको कुछ संदेह है तो परीक्षण कर देखो। अपना बचाव चाहता है, भले ही दूसरे जानसे मर
सन्दरीने पुसके अन्तर्भावोंको फौरन ही पढ़ जाय। सिपाहियोंने आकर उस भादमीको पकड़ लिया, समझ लिया कि विषयान्ध नारीके इंगितों पर लिया, हार सामने पड़ा हुआ था, प्रत्यक्षको प्रमाणको इस प्रकार नाचा करते हैं जैसे मदारीके इशारों पर क्या आवश्यकता थी। बन्दर । बोली-परीक्षण, तो सुनो आज मैंने सिपाही पहिचान कर भौचक्के रह गये, आश्चर्यमहारानीके गले में एक अति देदीप्यमान रत्नोंका हार का ठिकाना न रहा, दिलमें भय समा गया, किंकर्तव्य देखा है, उसे जैसे बने वैसे लाओ। हारके बिना मेरा विमूढ़ हो गए, सारी परिस्थितियां उनके चित्तपट पर जीवन और यौवन सभी सूना है । कितनी ही बार आ-आकर झूमने लगीं, सोचने लगे-राजकुमार तुम चोरी करने में अपनी बहादुरीकी डींग मारा करते वारिषेण ! यह तो बड़ा साधु आदमी है, इसके सदाथे, पर आज पता लग जायगा।
चारके गीत सारी जनता गाती और विश्वास करती इसमें नारीकी ताडनाथी और प्रेरणा थी उसकी है, बड़ा त्यागी और बेरागी है, फिर ऐसा क्यों ? इच्छा-पूर्ति करने की, विषयासक्त नारी के लिये क्या २ क्या त्याग और वैराग्यका यह कोरा ढोंग है ? क्या करनेको तैयार नहीं हो जाते। वह विषयान्ध विद्य- दुनियाँको ठगने के लिए ही त्याग और वैराग्य किया च्चोर भी ताड़ना सहता हुआ उसी समय रातको जाता है । धिक्कार ह ऐसे त्याग और वैराग्यको। चल पड़ा। विपयान्धता उसको उस ओर लिये जा रही सिपाहियोंकी हिम्मत काम नहीं कर रही थी, थी, मैं पकड़ा जाऊँगा, मेरा क्या होगा, मानों इन पकड़नेके लिए। इतने में एक सिपाहीने निर्भीक होकर बातोंकी कोई चिन्ता ही नहीं थी। चिन्ता थी केवल कहा--जो चोरी करता है, वह चोर होता है, चाहे अपनी सुन्दरीको खुश करनेकी।
राजा ही क्यों न हो ! अन्यायको पकड़ना हमारा कर्तव्य __ जैसे तैसे राजाके महलमें जाकर हार चुरानेमें है, हमारे ऊपर सुरक्षाका भार है, ये राजपुत्र हैं तो हम सफल हो गया। खुशीका ठिकाना न रहा, 'अब उसे इन्हें छोड़ थोड़े ही देंगे, पकड़ लो। जल्दी से जल्दी अपनी प्यारीके पास पहुँचनेकी धुन राजकुमार वारिषेणको पकड़ लिया गया। परन्तु थी। उसकी धुनने उसके विवेकको खो दिया था । राजकुमार यह सब देख रहे थे और अपने कमोंकी वह उस हारको भली भांति न छिपा सका, उस हार- लीला पर मुस्करा रहे थे। कैसी विचित्रता हे कर्मोकी, का दिव्यतेज उस अंधियारी रातमें चमक गया । किसी भी अवस्थामें नहीं छोड़ते । हर समय इस चमकको देखकर सिपाही पहरेदार चिल्लाते हए दौड़ आत्माको नाच नचाते फिरते है। तब तक. जब तक पड़े। नगरमें शोर हो गया, चारों ओरसे चोर चोर आत्मा अपनेको नहीं समझ लेता, आगे देखू क्याशब्द गूजने लगा। अब विद्युञ्चोरका भाग निकलना क्या होता है। बड़ा ही मुश्किल था, वह भागते भागते विचारने राजाने सुना, चोरी राजकुमार वारिपेणने की है। लगा भव मैं पकड़ा जाऊँगा, बच निकलना बहुत धमाका हुभा, सिर चकरा गया, क्रोधके मारे आंख मुश्किल है, क्या करू? इसी विचारमें भागते हुए लात हो गई, मोठ कप-कपाने लगे, हृदयकी धड़कन विद्युत्को एक आदमी श्मशान भूमिमें ध्यान लगाये बढ़ गई, आँखोंसे क्रोधकी ज्वाला निकलने लगी, हुए दिखाई दिया, उसे देखते ही सूझ आई कि इस मानो, वारिषेणको भस्म ही कर देगी । गर्ज कर हारको उसके पास रखदू, पीछे दौड़ती हुई जनता कहा-देखो इस पापीका नीच कर्म जो, श्मशानमें इसे पकड़ लेगी और मैं छिपकर बच जाऊंगा। जाकर ध्यान करता है, लोगोंको यह बतला कर कि