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वर्ष १४]
श्री बाबा लालमनदासजी और उनकी तपश्चर्याका माहात्म्य [५३ मेरठ आये और सारा हाल कह सुनाया। बाबाजी प्रतिज्ञा भंगकी, या उसके पाननेमें प्रमाद किया ने कहा कि चिन्ता की कोई बात नहीं है। उनके अथवा अवहेलना की, या उसका ठीक तरहसे कुएँ के पास ही जो अपनी जमीन हो वहां से लेकर पालन नहीं किया, उसे अपनी भूल पर पछताना अपने मन्दिर तक एक नाली सी खुदवालो, पानी ही पड़ा, जिसके दो तीन उदाहरण भी यहाँ आ जायगा और मैं परसों वहाँ आ जाऊंगा। दिये जाते हैं। जैनियोंने ऐसा ही किया, चुनांचे ज्योंही बाबाजी एक बार बाबाजीके पास एक आदमी आया, वहाँ आए, उसी समय उस नाली में से जोरसे और बोला महाराज ! मेरा गुजारा नहीं पानी वह निकला और जाटोंका कुआं खाली होने चलता, मैं बड़ा दुःखी हूँ। बाबाजीने पूछा तुम क्या लगा। यह दशा देखकर वहाँ के जाट बाबाजीके करते हो? उसने कहा कि मैं उवालकर सिंघाडा चरणों में पड़ गए और क्षमा मांगी, तथा प्रार्थना बेचता हूँ, बाबाजीने पूछा, कितने सिंघाडे उवालते की कि महाराज इसी कुयें से पानी लेकर मन्दिर हो? उसने कहा महाराज! चार टोकरे उवालकर बनाया जाय । इस तरह वह मन्दिर बन कर आज बेचता हूं फिर भी मेरा गुजारा नहीं होताभी अपने इस इतिवृत्तको अंचल में छुपाए हुए जैन रोजाना एक रुपया भी नहीं बचता, बाबाजीने कहा साधु की निष्ठा और तपश्चर्या की महत्ताको प्रकट यदि १) रुपया रोजना तुम्हें बचने लगे तो फिर कर रहा है।
तुम्हारा गुजारा आनन्दसे होने लगेगा। उसने एक समय बाबाजी मेरठसे हस्तिनापुर जारहे थे। कहा हाँ महाराज मेरा गुजारा आनन्दसे हो मार्गमें एक किसान अपने खेतमें ईख जला रहा जायगा । बाबाजीने कहा अच्छा भाई तुम कलसे था, बाबजीने उसे बुलाकर पूछा तुम क्या कर रहे हो । वह बोला महाराज ! मैं ईख जला रहा हूँ कर बेचा करो, तुम्हें १) रुपया रोजाना बच जाया जिससे अगले वर्ष इस खेतमें ५० मन गुड़ पैदा करेगा। निदान उसने वैसा ही किया तो उसे होगा। बाबाजीने कहा, यदि तुम ईख जलाना छोड़ रोजाना एक रुपया शामको वच जाया करता था। दो तो अगले वर्ष ६० मन गुड़ पैदा होगा । किसानने इस तरह उसका कार्य प्रानन्दसे चलने लगा। एक कहा कि महाराज ! मैं आपकी बातको कैसे मानलु दिन उसने सोचा कि कल मेलेका दिन है दो टोकरे कि ईख न जलाने पर मुझे अगले वर्ष ६० मन गुड सिंघाड़े उबाल लू', यह विचारकर उसने वैसा ही मिल जायगा । तब बाबाजीने अपने साथीकी ओर किया। किन्तु शामको बेचकर हिसाब लगाया गया इशारा करके किसानसे पूछा कि तुम इन्हें जानते तब उसे मूलमें से भी आठ आने कम निकले। हो, उसने कहा हाँ, महाराज, ये तो हमारे साहू- बादमें वह बहुत पछताया, परन्तु अब पछतानेसे कार हैं । बाबाजीने पुनः किसानसे कहा कि ईख न क्या होता है। वह अपने लोभके कारण प्रतिज्ञासे जलानेका नियम लो, तो अगले वर्ष तुम्हारे खेतमें गिर चुका था उसीका परिणाम उसे भोगना पड़ा। ६० मन गुड़ पैदा होगा, और यदि किसी कारण एक दिन एक पुरुष जिसे कोई अन्दरूनी बीमारी वश साठ मन गुड़ पैदा न हो तो तुम्हारे नुकसानको हो रही थी बाबाजीके पास आया और बोला ये अपनी ओरसे पूरा कर देंगे । इस बातको दोनोंने महाराज ! यदि किसी तरह मर जाऊँ तो मेरा स्वीकार कर लिया । किसान बाबाजीको सिर पिण्ड इस बीमारीसे छूट जायगा, बड़ी वेदना है। झुका कर चल दिया और बाबाजी हस्तिनापुरको सही नहीं जाती। बाबाजीने कहा कि यदि जीवन चले गये। अगले वर्ष उस किसानके खेतमें ६० मन पर्यन्तके लिये तू परस्त्रीका त्याग कर दे तो अच्छा गुढ़ पैदा हुआ और उसने इसकी सूचना अपने हो जायगा । उसने प्रतिज्ञा ले ली और वह कुछ साहूकारके पास पहुँचा दी। और वह भी बाबाजी. दिनोंमें ही बिल्कुल अच्छा होगया। किन्तु उसने का भक्त बन गया । परन्तु जिस व्यक्तिने अपनी अपनी प्रतिज्ञाके विरुद्ध छह महिने वाद ही परस्त्री