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महाकवि स्वयम्भू
और उसका तुलसीदासकी रामायणपर प्रभाव
(परमानन्दजी जैन)
अपंश भाषा के कवियोंमें चउमुह और स्वयंभू का कवि स्वयंभू में नैसर्गिक काव्य प्रतिभा थी । यह उननाम चासतौरसे उल्लेखनीय है। यद्यपि चउमुहकी बहु की काव्य रचनाओं के अध्ययनसे स्पष्ट हो जाता है। साथ मत्य तियाँ सम्प्रति अनुपलब्ध है। किन्तु उनका उल्लेख ही यह भी ज्ञात होता है कि स्वयंभदेव प्रकृतिके विशिष्ट स्वयंभूने स्वयं किया है और इससे चतुर्मुख स्वयंभूसे अभ्यासी थे। यही कारण है कि जहाँ उनकी काव्य-धारा पूर्ववर्ती हैं यह स्वत: सिद्ध है।
में सरलता है वहाँ प्रकृतिके रमणीय वर्णनसे उसकी शोभा स्वयंभूदेवका कुल ब्राह्मण था, परन्तु जैनधर्म पर उन- दुगुणित हो गई है, और श्रोतागण रूपचातक जन उसकी की प्रास्था हो जाने के कारण उनकी उस पर पूरी निष्ठा मधुरिमाका पान करते हुए तृप्त नहीं होते। यद्यपि कविकी एवं भक्ति थी । इनके पिताका नाम कवि मारुतदेव और उपलब्ध कृतियाँ बचावधि अप्रकाशित है।उनको पाँच कृतियों माताका नाम पमिनी था। कविने स्वयं अपने छन्द के बनाए जानेका उल्लेख मिलता है जिनमेंसे इस समय तीन प्रन्थमें मारुतदेवके नामसे उद्धरण दिया है । इससे संभव हो उपलब्ध हैं। पउमचरित, हरिवंशपुराण और स्वयंभू है कि वे कविके पिता ही हों। कविकी तीन परिनयाँ थीं, छन्द । शेष दो कृतियाँ स्वयंभू ग्याकरण और पंचमी चरित प्रादित्य देवी, जिसने अयोध्याकाण्ड लिपि किया था। अभी तक अनुपलब्ध हैं। ये सभी कृतियाँ अपभ्रंश या दसरी सामिश्रब्बा, जिसने 'पउम चरिउ'की बीस संधि लिख- देशी भाषामें रची गई हैं। बाई थी, और तीसरी सुधन्वा, जिसके पवित्र गर्भसे। त्रिभुवन स्वयंभू जैसा प्रतिभा सम्पन पुत्र उत्तम हुआ था।
रामकी कथा कितनी लोकप्रिय है, इसे बतलानेकी भावजो अपने पिताके समान ही विद्वान और कवि था।
श्यकता नहीं । भारतीय साहित्य में ऐसा कोई साहित्य होगा, कविवरके सुपुत्र त्रिभुवनस्वयंभू को छोड़कर अन्य पुत्रा
जिसमें रामकथाका कोई उल्लेख न किया गया हो । जैन, दिकोंका कोई पता नहीं चलता। कविवर शरीरसे दुबले
वैदिक और बौद्ध साहित्य में रामकथा पर अनेक पाख्यान पतले और उसत थे। उनकी नाक चपटी और दांत
पाये जाते हैं । यद्यपि जैन वैदिक रामायणोंको छोड़कर विरल थे।
बौद्ध रामायण मेरे अवलोकन में नहीं आई इस कारण यहाँ ® पउमिणि जणणि गम्भ संभूएं,
उसके सम्बन्धमें कुछ लिख. सम्भव नहीं है, तथापि बौद्धमारुतएव स्व अणुरायें ।२१-२ धर्मको अपेक्षा जैनधर्ममें 'रामकथा' का खासा प्रचार रहा xभाइच्चुएवि-पडिमोवमायें भाइच्चम्बिमाए । है। उसमें तद्विषयक साहित्यकी सृष्टि प्राकृत संस्कृत. बीउ मउज्मा-कंडंसयंभू धरिणीय लेहवियं । संघि..२ अपनश और हिन्दी भाषामें की गई है। जिनके नाम .+ धुवरायबत इयलु अप्पणत्ति शत्तीसुर्याणु पाढेण (?)। पउमचरित, बलभद्रचरित, रामचरित, सीताचरित, पन
णामेणसामिश्रधा सयंभू घरिणी महासत्ता, संधि २० चरित, पमपुराण और रामपुराण प्रादि है । यद्यपि जैन तीए लिहाधिय मिणं वीसहिं मासासएहिं पटिबद्ध। रामायण में भी मान्यतामेद तथा पात्रोंके चरितमें कुछ मतसिरि विज्जाहर-कंड, कण्डं पिव कामएक्स्स ॥२० मेद पाया जाता है परन्तु उससे मूल कथामें कोई अन्तर सम्वे वि सुश्रा पंजर सुअव्व परिपक्राई सिकंवति। नहीं पड़ता । जैन समाजमें रामको कथाका जितना समादर कहरा अस्स सुमो सुपब्व-सुह-गम्भ संभूमो ॥ है उतना समादर पूर्वकालमें अन्य धर्मों में भी नहीं था, और महतणुएण पईहरगत्ते विवर हासे पविरल दंतें उसका कारण रामका पावन जीवन-परिचय ही है । हिन्दू
१५.२ समाजमें रामकथाका जो भारी प्रभाव इस समय देखा जाता
धमक