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अनेकान्त
[वर्ष १४ शाला वापिस जाऊँगी । तब वे यात्रार्थ पहाइपर की आशा छोड़ कर उसे जमीन पर लिटा दिया पैदल गई, और वहांसे सानन्द वापिस आई। गया। अनेक वैद्य व डाक्टर इकट्ठे हुए, पर उसकी
सम्मेद शिखरजीके जिस संघका ऊपर उल्लेख बीमारी पर किसी का वश चलता दिखाई नहीं किया गया था उसमें नानौता जिला सहारनपुरके दिया और उन वैद्य-डाक्टरों में से उनका धीरे २ ला• सुन्दरलालजी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती खिसकना भी शुरू हो गया। लड़के का बाप और रामीबाई भी थीं, जो मुख्तार श्रीजगलकिशोरजीके मा बड़ी चिंता में निमग्न थे और यह सोच रहे थे बाबा और दादी होती थीं। उन्होंने छह पैसेकी धान ।
कि क्या किया जाय इसी चिन्तासे व्यग्र हो लड़के लकर उसके चावल निकालकर श्राहार बनाया. कापिता बाबा लालमनदास जा क पास दाड़ा गया और उसे भक्तिपूर्वक बाबाजीको प्रदान किया।
और रोया। लड़के की बीमारी और अपनी परेउन्होंने जो चावल परोसे उसमेंसे बाबाजीने सिर्फ ।
शानी की सब कथा कह सुनाई और प्रार्थना की, कि ५ या ७ दानेही गिनकर लिये और दो-ढाई सेर पानी ।
किसी तरह यह बच्चा अच्छा हो जाय। तब बाबापिया। आहार हो चुकनेपर उन्होंने कहाकि अन्य
जीने उसे सान्त्वना देते हुए कहा, घबड़ाओ नहीं। सबको भोजन कराइये । चुनांचे जो लोग मिले उन्हें
: आपने गलत कहा है, बच्चा अच्छी हालत में है भी भोजन कराया गया, किन्तु फिरभी वह भोजन
और वह खिचड़ी मांग रहा है। तुम घर जाकर अवशिष्ट रहा, उसी दिन ला० सुन्दरलालजीको गुर्दे
देखो तो सही, घबड़ाभो नहीं और वहां पहुंच कर
वापिस आ जाना। लड़के का पिता घर जाकर का दर्द बड़ी तेजीसे उठ खड़ा हुआ, जिससे उप
देखता है तो लड़का बराबर बोल रहा है और खाने स्थित यात्रियों और घरवालोंमें बेचैनी दौड़ गई। बाबाजीने लोगोंकी बेचैनी देखकर पूछा कि क्या
को खिचड़ी मांग रहा है। इस घटनासे वहांकी बात है ? जो आप लोग सब परेशान हो रहे हैं।
सारी जनतामें बाबाजीके प्रति जो श्रद्धा और
आदर भाव बढ़ा, वह लेखनीका विषय नहीं। अब तब लोगोंने सारा हाल कह सुनाया कि ला० सुन्दर
जनता अधिकाधिक संख्या में उनके पास आती और लालाजी को गुर्दे का दर्द तीव्र वेदनाके साथ उठ
उनसे धर्मका उपदेश सुन कर वापिस चली जाती। गया है, इसीसे सब परेशान हो रहे हैं। बाबाजीने
दूसरी घटना मेरठ जिले के एक भनेरी प्रामकी कहाकि बड़ी हरड़ मंगवाकर उसे ठण्डे पानीके साथ
है, जो आलम या आलमपुर स्टेशनके पास है। दे दीजिये दर्द जाता रहेगा, किन्तु लोगोंको दर्दमें ठण्डा पानी देना अनुचित प्रतीत हुआ, फिरभी मन्दिर बनवाने की प्रेरणा की, तब उनके निर्देशा
बाबाजी ने ग्रामवासी जैनियोंसे वहां एक जिनबाबाजीकी आज्ञानुसार हरद पानीके साथ देदी - गई, उससे सब ददे शान्त हो गया और फिर वह
नुसार साधर्मी भाइयोंने जिन मन्दिर बनवाने का
कार्य शुरू कर दिया। पर स्थानीय जाटोंने मन्दिर जीवनपर्यन्त उदित नहीं हुआ। इन सब बातोंसे, लोगोंकी. बाबाजीमें आस्था और भी दृढ़ होगई।
के कार्य के लिये अपने कुएँ से पानी लेना बन्द कर अस्तु, वहसि संघ सानन्द हापुड़ आया। तब बाबा- लेकर मन्दिर का निर्माण कार्य किया जाता। जैनियों
। दिया। वहाँ दूसरा कोई कुत्रां नहीं था जिससे पानी जीको स्थानीय जनताने वहां ही रोक लिया। बाबाजीने वहां ही चातुर्मास किया और वहाँ मन्दिरजीके :
ने उन जाटोंसे बहुत कुछ अनुनय-विनय की, परन्तु
उसका कोई फल न हुआ-वे टस से मस नहीं हुए, लिये प्ररणा की, परिणामस्वरूप मंदिरजीको तीन दुकानें प्राप्त हुई।
और उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि हम जैनमन्दिर
के लिये पानी नहीं लेने देंगे, चाहे मन्दिर बने या अन्य घटनाएँ
न बने । तब जैनी लोग बड़े संकट में पड़ गए कि एक बार एक बड़े प्रतिष्ठित धनीका इकलौता मन्दिरका निर्माणकार्य कैसे सम्पन्न हो, फलतः पुत्र सहसा बीमार हो गया। यहां तक कि जीवन निराश और अत्यन्त दुखी हो बाबाजी के पास