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सम्पादकीय
गत वर्षकी १२वी किरणमें पत्रके प्रधान सम्पादक गतवर्ष इसी कार्यको सुन्दर बनाने के निमित्तसे श्रीमान् श्रीमान् प्राचार्य जुगलकिशोरजी मुख्तारने अपने सम्पादकीय बाछोटेलालजो अध्यक्ष पोरसेवामन्दिर कलकत्तासे दिल्ली वक्तव्यमें 'अनेकान्तकी वर्ष समाप्ति और कुछ निवेदन' आकर पूरे पांच माह ठहरे थे। अनेकान्तके अ.प दूसरे शीर्षकके अन्तर्गत यह प्रकट किया था कि-'इस नये सम्पादक है। एक तो आप शरीरसे जन्मजातही कृष एवं भयंकर रोगके धक्केसे मेरी शक्रियाँ और भी जीर्ण-शीर्ण हो दुवंश हैं: फिर दिल्लीको भयंकर गर्मी में रात-दिन भवनगई हैं। इसीसे शरीरमें शक्रिके पुनः संचार एवं स्वास्थ्य निर्माणके कार्यमें व्यस्त और मार्थिक समस्याको हल करने के लाभकी दृष्टिसे मैं कम-से-कम एक वर्ष के लिये सम्पादकाद- लिये व्यग्र रहने के कारण पाप रोग-प्रस्त हो गए, और पम्तमें से अवकाश ग्रहण कर रहा है। अतः इस किरणके साथ भवन-निर्माण के कार्यको अधूरा छोड़कर ही पापको कलकत्ते अपने पाठकोंसे विदाई ले रहा हूँ । यदि जीवन शेप जाना पड़ा। वहां पहुंचकर भी प्रथम तो एक लम्बे समय रहा, तो फिर किसी-न-किसी रूपसे उनकी सेवामें उपस्थित तक अस्वस्थ ही रहे, और स्वस्थ होते ही अन्यकार्यों में व्यस्त हो सकूगा । पुन: इसके अनन्तर 'अनेकान्तका हिसाब और हो गए। पुनः ऐतिहासिक खोज-शोधके कार्यके लिये मद्रास घाटा' शीर्षकमें अनेकान्तके प्रकाशनमें होने वाले घाटेका चले गए। इत्यादि कारणोंसे वे भी अनेकान्तके लिये कोई जिक करके अगले वर्षकी समस्या' शीर्षकके भीतर यह लेखादि लिखकर नहीं भेज सके। प्रकट किया था कि इस घाटेको स्थितिमें पत्रको धागे कैसे तीसरे मम्पादक श्रीमान् बाबू जयभगवानजी एडवोकेट प्रकाशित किया जाय। इसके सम्बन्ध में उन्होंने अपने और पानीपत है। आप वीर सेवामन्दिरके मंत्री भी है। साहिअन्य लोगोंके कुछ सुझाव भी प्रस्तुत किये थे-जिनमेंसे त्यिक और ऐतिहासिक शोध-खोजके कार्यो अत्यन्त रुचि पहला तो यह था कि 'पत्रको त्रैमासिक करके एकमात्र होने पर भी वकालतका पेश होने के कारण उन्हें अदालतसे माहित्य और इतिहासके कामोंके लिये ही सीमितकर दिया ही अवकाश कम मिलता है। फिर इधर कुछ वर्षोंसे दमेका जाय ।' और दूसरा यह भी था कि 'पृष्ठसंख्या कमकरके दौरा भी चल रहा है । गाईस्थिक चिन्तायें तो उन्हें प्रारम्भपत्रको जैसे तैसे चालू रखा जाय । इस प्रकारके वक्तव्यके से ही घेरे हये रहीं हैं ? इन सब कारणोंसे चाहते हुए भी साथ १३ वर्षको १२वीं किरणको प्रकाशित किया गया था। न तो पत्रके सम्पादन में ही इन पिछले दिनों कोई योग
दे सके और कोई लेखादि भी लिख सके। इस प्रकार मुख्तार साहबने इस प्रकार उक्त वक्तव्य प्रकट करके .
अपने सम्पादक मण्डल के तीनों प्रधान सहयोगके बिना मैं केवल 'अनेकान्त से ही विदाई नहीं ली, अपितु अपनी एकदमही अपंग होगया । लेखकोंको बार-बार लिखने पर अस्वस्थता और प्रशक्तिनाके का ण वीरसेवामन्दिरके अधि
भी कहींसे कोई लेखादि तो पहलेहा दुर्लभ होरहे थे। रठाता पदकी जिम्मेदारियोंसे भी प्रकाश ग्रहण कर लिया।
फलस्वरूप एक वर्षके लिए पत्रका प्रकाशन स्थिगित करना पाठकोंको यह ज्ञातही होगा कि दिल्ली में वीरसेवामन्दिर ही सचित समझा गया और इस प्रकार पूरे एक वर्ष तक के निजी भवन निर्माणका कार्य विगत वर्षसे हो रहा है। 'अनेकान्त' बन्द रहा।
इत्यादि।