Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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संदेश
डा० संजीवनप्रसाद एम० ए० पी-एच० डी०
किसान महाविद्यालय सोहसराय (नालन्दा)
२४ दिसम्बर, १९७३ विज्ञान के चरमोत्कर्ष पर मानव-मन जिन शंका-आशंकाओं के जड़ बिन्दु पर आकर टिक गया है, वहाँ मन को गतिशील, शंकाओं को निर्मूल और अनपेक्षित अवरोध को निष्कंटकित करने में उस धर्म का महत् योग हो सकता है जिसने ढाई हजार वर्ष पूर्व ही "पुद्गल" अवधारणा को स्वीकार कर जगत और जीवन की तात्विक व्याख्या की है। ऋषियों का जीवन, युग का इतिहास वैमनस्य के नाश का संकेत और सत् धर्म एवं जागरण का संदेश होता है। वर्तमान भारत में फैली जातीयता, फूट, आपसी सन्देह, निष्क्रियता एवं भ्रष्टाचार के उन्मूलन का प्रयास जिस सक्रिय और करुणापूर्ण ढंग से श्री आनन्द ऋषि जी ने सामाजिक स्तर पर जन साधारण में लीन होकर किया है उसकी प्रशंसा, अभ्यर्थना करना हमारा धर्म और पुनीत कर्तव्य है । आप सबों की दृष्टि इधर मुड़ी अतः आपको साधुवाद देता हूँ।
कान्तीलाल चोरडिया सम्पादक-जैन जागृति,
पूना-(महाराष्ट्र) आचार्यप्रवर आनन्द ऋषि जो के नाम की तरह गुण एवं दर्शन भी आनन्द प्रद हैं। आपश्री की स्वाभाविक सरलता और मानसिक माधूर्य मानव मात्र को अपनी ओर आकार्षित करते हैं।
शिक्षा, साहित्य के क्षेत्र में आपके द्वारा किए गए कार्य समाज को स्मरणीय देन है। ___आचार्य श्री की ज्ञान-गरिमा और संयम-साधना मानवीय जीवन को गौरव गाथा है। अतएव वे चिरायु होकर हमें मार्ग दर्शन कराते रहें यही मेरी शुभ कामना है।
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