________________
लोभी होते अर्थपरायण
२५
चार दिन बाद ही जब सोने के सिक्कों के बदले उन्हें किसी तरह का सामान नहीं मिला तो वे भूखे मरने लगे । आखिर मजबूर होकर दोनों फिर खलीफा के न्यायालय में उपस्थित हुए और सारी सम्पत्ति दी और उनके चरणों में प्रार्थना की- " मैंने लोभ के वशीभूत होकर किसी भी तरह धन पाने की कोशिश में बड़े-बड़े अनर्थ किये । अब आप इस धन को शहर की जनता में बंटवा दें।" दोनों को यह प्रतीति हो गई कि "धन दबाकर रखने से नहीं, उसका सदुपयोग करने से ही सुख मिलता है ।"
सचमुच चोरी की जड़ धनलिप्सा में है । चोरी के अपराध में पकड़े गये युवक से जजसाहब ने पूछा—तुमने चोरी क्यों की ? उसने कहा - " क्या बताऊँ, मुझे रातोंरात लखपति बनने की धुन सवार हुई । अपने प्रयत्न में सफल भी हो गया था, लेकिन कम्बख्त सिपाही मुझे पकड़ लाए। मेरे मंसूबे धरे ही रह गये । "
,
इस उत्तर से लोभी की मनोवृत्ति का स्पष्ट परिचय हो जाता है ।
धनलोभ : सत्य विनाशक
इतना ही नहीं, धन का लोभ सत्य का खात्मा कर देता है । केवल एक परिवार और समाज या राष्ट्र ही नहीं, सारे संसार में लोभ या लोभी असत्य, धोखेबाजी, छलकपट, अन्याय आदि अनर्थों का मूल बना हुआ है । बड़े-बड़े राष्ट्र धन के लोभ में आकर कूटनीतिक चालें चलते हैं, बड़े-बड़े षड्यन्त्र रचते हैं । रूस में एक प्रसिद्ध कहावत है
When money speaks, the truth is silent."
'जब धन बोलने लगता है, तब सत्य को चुप होना पड़ता है।' वास्तव में धनलोभ सत्य और प्रामाणिकता का शत्रु है ।
परस्पर अविश्वास का कारण : धनलोभ
धनलोलुपता परस्पर अविश्वास का भी कारण बन जाती है । बड़े-बड़े कुलीन घरों में धनलोभ परस्पर अविश्वास पैदा कर देता है । अविश्वास हो जाने पर मनुष्य को सन्देह और शंका का रोग लग जाता है, जिससे जल्दी छुटकारा पाना मुश्किल है । इसीलिए एक कवि तो धन को दूर से ही सलाम करता है
अविश्वास - निधानाय महापातक हेतवे । पितापुत्रविरोधाय हिरण्याय नमोऽस्तुते ||
धन ! तू अविश्वास का खजाना है, महापाप का कारण है, पिता और पुत्र
को लड़ाने वाला है, अत: तुझे दूर से ही मेरा नमस्कार है ।
Jain Education International
एक सौतेली माँ ने अपनी सौत के पुत्र को विष देकर इसलिए मार डाला कि यह बड़ा होने पर मेरे पुत्रों के हक में से हिस्सा लेगा ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org