Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
* अनुावदक-सलब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी +
पदेसाए अभंतरं तच्चं दाहिणं अद्धमंडल संठिई उवसंकमित्ता चारं चरति ॥ ता जयाणं सुरिए अब्भंतरं तच्चं दाहिणं अद्ध मंडलं संठिई उवसंकमित्ता चार चरति, तदाणं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति चउहिं एगट्ठिया भाग मुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालस मुहुत्ता राई भवति, चउहिं एगट्ठिभाग मुहुरोहिं अहिया॥ एवं खलु एतेणं उवाएणं निक्खममाणे सरिए तदाणंतराओ तदाणंतर संकं तंसि देससि ततं अद्वमंडलं संठिइं
संकममाणे २ दाहिणाए २ अंतराए भागाए तसाए पदसाते सव्वं बाहिरं उत्तरद्ध के तीसरे मांडले को अंगीकार कर चाल चलता है. जब सर्य आभ्यंतर के तीसरे अर्ध गंडले. के दक्षिणार्ध विभागपर संस्थित हो उपसंक्रम कर चाल चलता है तब अठारह मुहू म एक योजन के एकसठिये चार भाग कम का दिन होता है और बारह मुहूर्न व एकसठिए चार भाग अधिक की रात्रि होती है. इस तरह उक्त उपाय से नीकलता हुवा सूर्य प्रत्येक मंडल के एक योजन के एकसठिये ४८ भाग और दो २ योजन क्षेत्र उल्लंघता हुवा तदनन्तर मंडल में प्रवेश करता हुवा एक अहोरात्रि दक्षिणा विभाग में, एक बहोरात्रि, उत्तरार्ध विभाग में उन अर्थ मंडलपर संस्थित । संक्रमता हुवा दक्षिण दिशा के दो योजन व एक योजन के एकमठिये ४८ भाग उस प्रदेश से
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालापसादजी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.ainelibrary.org