Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ता कहते अड, मंडल संठिई आहितति वदेज्जा तत्थ खलु इमा दुविहा अद्धमंडल संठिई. पण्णत्ता तंजहा दाहिणा चेव उत्तराचेव ॥ १ ॥. ता कहते दाहिणअद्ध मंडलसंठिई अहितेति वेदेज्जा, वा अयण्णं जंवृद्दीवेदीवे सव्वदीवसमुदाणं जाव परिक्खवणं ता जयाणं सरिए सभंतर दाहिणं अद्धमंडलं संठिति उवसंकमित्ता चार चरति, तताणं उत्तमकटुपत्ते उक्कासए अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति जहण्णया
अब दूसरा अंतर पाहुडा में अर्धमंडल स्पर्शने का अधिकार कहा है. यहां गौतम स्वामी प्रश्न-पुछते 7 हैं. अहो भगवन् ! एकेक मूर्य एकेक अहोरात्रि से एकेक मांडले के अर्थ विभाग को परिभ्रमण कर
र्ण करे एकेक अहो रात्रि से प्राधे मंडल पर व्यवस्थित रहे यह कथन आप के मत में किस तरह उत्तर-अध मंडल दो प्रकार के कहे हैं . दक्षिण दिशा की तरफ आधा मंडल रहा है। और २ उत्तर दिशा के स्थान आधा मंडल रहा है. ॥१॥ प्रश्न-दक्षिण दिशा के अर्धमंडल की संस्थिति कैसे कही है ? उत्तर- सब द्वीप समुद्र में यह जम्बूद्वीप यावत् परिधिवाला है. इस में जब सूर्य दक्षिषा विभाग में सब के आभ्यंतर मांडले पर दक्षिण के अर्थ मंडल की संस्थिति कोई अंगीकार कर चाल चलता है तब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होवे और जघन्य बारह मुहून की रात्रि होवे. अब वह सूर्य उस प्रथम मांडले पर से नीकल कर दो योजन व एक योजन के एकसठिये ४८
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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