Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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छम्मासे अस्थि अट्टारसमुहुत्ता राति भवति, णत्थि अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति अस्थि दुवालस मुहुत्ते दिवसे त्यि दुवालम मुहुत्ता राई भवति । दोच्चे छम्मासे अस्थि अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति पत्थि अट्ठारस मुहुत्ता राई, अस्थि दुवालस मुहुत्ता राई जात्थ दुवालस मुहुत्ते दिवमे भवति पढमे वा छम्मासे दोच्च वा छम्मासे, णत्थि पण्णरस मुहुत्ते दिवसे णत्यि पण्णरस मुहुत्ता राति भवति, गण्णत्थ राइंदिघाणं वड्डोवढीए मुहत्ताणं चयोचतेणं, णण्गत्थवा अणुवाय गइयं पुवेणं दोणिभाग, पाहुडिया गाहाओ भाणियवा ॥ १ ॥१॥ *
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488+ सप्तदश चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्र-षष्ठ उपाङ्ग -
+ पहिला पाहुडे का पाइला अंतर पाहुडा 48
११५ - मुहू का दिन हो और रात्रि १४ मुहून की होवे और२३ वे मांडलेपर दिन १४ मुहर्न
का होवे और मात्र १५ मुहूर्त की होवे. इस कारन से पनाह मुहूर्त का दिन व पनाह मुर्त की रात्रि न होवं. इस तरह सूर्य के मांडलपर डानि वृद्धि कही. यहांर छ भाग का खुलासा करत हैं. १८३ मांडलपर छ मुहू ही हानिवृद्धि होती है. इस में १८३ को तीन का भागने मे ११ होते हैं। और छ मुहू का तीन का भागदेन से दो होते हैं. इसी से एक मुहू के एकमठिय दो भाग
की हानिवृद्धि होवे. मर्यादा से वृद्धि मर्यादा से हानि होवे. पन्नाह मुहूर्त के रात्रि दिन नहीं होते। १. पूर्वोक्त दो भाग की हानिवृद्धि होती है. यह प्रथम पाडा ग्रथम अंतर पाहडा ना ॥॥ ॥
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