Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक षिजी+
चारं चरति तयाणं सव्वबाहिरंमंडलं पणिहाय एगेणं तियासिएणं राइंदियसतेणं तिणि छावट्ठी एगसट्टी भागमुहुत्तसतेणं रातिखत्तस्स गिविट्टित्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्डित्ता चारं चरति, तयाणं उत्तमकट्ठ पत्त उक्कोसए अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति, जहणिया दुवालस मुहुत्ता राईभवति ॥ एसणं दोच्चस्स छम्मासस्स पजवासणे एसणं आदिच्चसंवच्छरे अदिच्च संवच्छरस्स एसणं पजवासणे, इति खलु तस्सेव अदिच्चसंवच्छरस्स सयं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति, सयं अट्ठारस मुहुत्तत्ता राइ
भवति, सयं दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवति सयं दुवालस मुहुत्साराई भवति, पढमे इस में प्रथम छापाम के अंते में अठारह मुहूर्न की रात्रि होती है परंतु अठारह मुहूर्त का दिन नहीं होता है, और बारह मुहूर्त का दिन होता है परंतु बारह मुहूर्त की रात्रि नहीं होती है. दूपरे छ मास के अंतमें अठारह मुहूर्त का दिन होता है परंतु अठारह मुहूर्त की रात्रि नहीं होती हैं, बारह मुहूर्त का दिन नहीं होता है परंतु बारह महर्न की रात्रि होती है. पहिले व दूसरे छ मास के अंत में पसरह मुहूर्न का दिन व पन्नड मुहूर्त की रात्रि नहीं होती है. पन्नाह मुहू की रात्रि व पनाह मुहूर्त का दिन कदापि नहीं होता है. क्यों कि छमाम में सब मीलकर १८३ अहोरात्र और छ महून की हानिवृद्धि है. इस को अर्ध करने मे ९१॥ व दिन होवे. उम में पहिले का एक मारला वढाने से ९२॥ मांडला होवे. उस वक्त पभरह मुहूर्त का दिन व पनरह मुहून की रात्रि होते. परंतु १२ व मांडलेपर मूर्य चलता होवे तब
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी .
अर्थ
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