Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात]
मेघ संबंधी माता के दोहद के कारण, यथासमय जन्म लेनेवाले बालक का नाम भी मेघ ही रक्खा जाता है।
सम्राट के पुत्र के लालन-पालन के विषय में कहना ही क्या! बड़े प्यार से उसका पालन-पोषणसंगोपन हुआ। आठ वर्ष की उम्र होने पर उसे कला-शिक्षण के लिए कलाचार्य के सुपुर्द कर दिया गया। कलाचार्य ने पुरुष की बहत्तर कलाओं की शिक्षा दी। उन कलाओं का नामोल्लेख इस प्रसंग में किया गया है। कलाकुशल मेघ के अंग-अंग खिल उठे। वह अठारह देशी भाषाओं में प्रवीण, गीत-नृत्य में निपुण और युद्धकला में भी निष्णात हो गया। तत्पश्चात् आठ राजकुमारियों के साथ एक ही दिन उसका विवाह किया गया। इस प्रकार राजकुमार मेघ उत्तम राजसी भोग-उपभोग भोगने लगा।
कुछ काल के पश्चात् जनपद-विहार करते-करते और जगत् के जीवों को शाश्वत एवं पारमार्थिक सुख तथा कल्याण का पथ प्रदर्शित करते हुए भगवान् महावीर का राजगृह नगर में पदार्पण हुआ। राजा-प्रजा सभी धर्मदेशना श्रवण करने के लिए प्रभु की सेवा में उपस्थित हुए। मेघकुमार को जब भगवान् के समवसरण का वृत्तान्त विदित हुआ तो वह भी कहाँ पीछे रहने वाला था। आत्मा में जब एक बार सच्ची जागृति आ जाती है, अपने असीम आन्तरिक वैभव की झांकी मिल जाती है, आत्मा जब एक बार भी स्व-संवेदन के अद्भुत, अपूर्व अमृत-रस का आस्वादन कर लेता है, तब संसार का उत्तम से उत्तम वैभव और उत्कृष्ट से उत्कृष्ट भोग भी उसे वालू के कवल के समान नीरस, निस्वाद और फीके जान पड़ते हैं। राजकुमार मेघ का विवेक जागृत हो चुका था। वह भी भगवान् की उपासना के लिए पहुंचा। धर्मदेशना श्रवण की। भगवान् का एक-एक बोल मानो अमृत का एक-एक बिन्दु था। उसका पान करते ही उसके आह्लाद की सीमा न रही। आत्मा लोकोत्तर आलोक से उद्भासित हो उठी। उसने अपने-आपको भगवत्-चरणों में समर्पित कर दिया। सम्राट के लाडले नौजवान पुत्र ने भिक्षु बनने का सुदृढ़ संकल्प कर लिया।
मेघ माता-पिता की अनुमति प्राप्त करने उनके पास पहुँचा। दीक्षा की बात सुनते ही माता धारिणी देवी तो बेहोश होकर धड़ाम से धरती पर गिर पड़ी और पिता श्रेणिक सम्राट् चकित रह गए। उन्होंने मेघकुमार को प्रथम तो अनेक प्रकार के सांसारिक प्रलोभन देकर ललचाना चाहा। जब उनका कुछ भी असर न हुआ तो साधु-जीवन की कठोरता, भयंकरता एवं दुस्साध्यता का वर्णन किया। यह सब भी जब विफल हुआ तो मातापिता समझ गए–'सूरदास की कारी कमरिया चढ़े न दूजो रंग।'
आखिर माता-पिता ने अनमने भाव से एक दिन के लिए राज्यासीन होने का आग्रह किया, जिसे मेघ ने मौनभाव से स्वीकार कर लिया। बड़े ठाठ-बाट से राज्याभिषेक हुआ। राजकुमार मेघ अब सम्राट् मेघ बन गए। मगर उनका संकल्प कब बदलने वाला था! तत्काल ही उन्होंने संयम ग्रहण करने की अभिलाषा व्यक्त की और उपकरणों की मांग की। एक लाख स्वर्ण-मोहरों से पात्र एवं एक लाख से वस्त्र खरीदे गए। एक लाख मोहरें देकर शिरोमुंडन के लिए नाई बुलवाया गया। बड़े ऐश्वर्य के साथ दीक्षा हो गई। सम्राट ने स्वेच्छापूर्वक भिक्षुक-जीवन अंगीकार कर लिया। इस प्रकार की महान् क्रान्ति करने का सामर्थ्य सिर्फ धर्म में ही है। संसार के अन्य किसी वाद में नहीं।