Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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परिशिष्ट १]
[५४९ १-जैसे मिट्ठी के लेप से भारी होकर तुम्बा जल के तल में चला जाता है, इसी प्रकार आस्रव द्वारा उपार्जित कर्मों से भारी होकर जीव अधोगति में जाता है।
२-जैसे वही तुम्बा मिट्टी के लेप से विमुक्त होने पर, लघु होकर जल के ऊपर स्थित होता है, वैसे ही कर्म से विमुक्त जीव लोक के अग्र-ऊपरी भाग में प्रतिष्ठित-विराजमान हो जाते हैं।
सप्तम अध्ययन १-जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह णाइजणो तहा समणसंघो।
जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह वयाई॥ - २-जह सा उज्झियणामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा।
पेसण-गारित्तेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया॥ ३-तह भव्वो जो कोई, संघसमक्खं गुरुविदिण्णाई। ____ पडिवजिउं समुज्झइ, महव्वयाइं महामोहा॥ ४-सो इह चेव भवम्मि, जणाण धिक्कारभायणं होइ।
परलोए उ दुहत्तो, नाणाजोणीसु संचरइ॥ ५-जह वा सा भोगवती, जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा।
पेसणविसेसकारित्तणेण पत्ता दुहं चेव॥ ६-तह जो महव्वयाई उवभंजुइ जीवियत्ति पालिंतो।
आहाराइसु सत्तो, चत्तो सिवसाहणिच्छाए॥ ७–सो इत्थ जहिच्छाए, पावइ आहारमाइ लिंगित्ति।
विउसाण नाइपुजो परलोयम्मि दुही चेव॥ ८-जइ वा रक्खिय बहुया, रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा।
परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता॥ ९-तह जो जीवो सम्मं पडिवजिज्जा महव्वए पंच।
पालेइ निरइयारे, पमायलेसंपि वज्जेंतो॥ १०-सो अप्पहिएक्करई, इहलोयंमि विविऊहिं पणयपओ।
एगंतसुही जायइ, परिम्म मोक्खं पि पावेइ। ११-जह रोहिणी उसुण्हा, रोवियसाली जहत्थमभिहाणा।
वड्डित्ता सालिकणे पत्ता सव्वस्स सामित्तं ॥ १२-तह जो भव्वो पाविय वयाई पालेइ अप्पणा सम्म।
अन्नेसि पि भव्वाणं देह अणेगसिं हियहेउं॥ १३-सो इह संघपहाणो, जगुप्पहाणेत्ति लहइ संसदं ।
अप्प-परेसिं कल्लाणकारओ गोयमपहुव्व॥