Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा तब जिनदत्त, सागरदत्त के इस अर्थ को सुनकर जहाँ सागरदारक था, वहाँ आया। आकर सागरदारक से बोला-'हे पुत्र! तुमने बुरा किया जो सागरदत्त के घर से यहाँ एकदम चले आये। अतएव हे पुत्र! जो हुआ सो हुआ, अब तुम सागरदत्त के घर चले जाओ।'
५७-तए णं से सागरए जिणदत्तं एवं वयासी-'अवि याइं अहं ताओ! गिरिपडणं वा तरुपडणं वा मरुप्पवायं वा जलप्पवेसं वा जलणप्पवेसं वा विसभक्खणं वा वेहाणसं वा सत्थोवाडणं वा गिद्धपिटुं वा पव्वजं वा बिदेसगमणं वा अब्भुवगच्छिज्जामि, नो खलु अहं सागरदत्त गिहं गच्छिज्जा।'
तब सागर पुत्र ने जिनदत्त से इस प्रकार कहा-'हे तात! मुझे पर्वत से गिरना स्वीकार है, वृक्ष से गिरना स्वीकार है, मरुप्रदेश (रेगिस्तान) में पड़ना स्वीकार है, जल में डूब जाना, आग में प्रवेश करना, विषभक्षण करना, अपने शरीर को श्मशान में या जंगल में छोड़ देना कि जिससे जानवर या प्रेत खा जाएँ, गृध्रपृष्ठ मरण (हाथी आदि के मुर्दे में प्रवेश कर जाना कि जिससे गीध आदि खा जाएँ), इसी प्रकार दीक्षा ले लेना या परदेश में चला जाना स्वीकार है, परन्तु मैं निश्चय ही सागरदत्त के घर नहीं जाऊँगा।'
५८-तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे कुटुंतरिए सागरस्स एयमटुंनिसामेइ, निसामित्ता लज्जिए विलीए विड्डे जिणदत्तस्स गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेवसए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुकुमालियं दारियं सद्दावेइ, सहावित्ता अंके निवेसेइ, निवेसित्ता एवं वयासी
"किं णं तव पुत्ता! सागरएणं दारएणं मुक्का ! अहं णं तुमं तस्स दाहामि जस्स णं तुम इट्ठा जाव मणामा भविस्ससि'त्ति सूमालियंदारियं ताहिं इट्ठाहिं वग्गूहि समासासेइ, समासासित्ता पडिविसज्जेइ।
उस समय सागरदत्त सार्थवाह ने दीवार के पीछे से सागर पुत्र के इस अर्थ को सुन लिया। सुनकर वह ऐसा लज्जित हुआ कि धरती फट जाय तो मैं उसमें समा जाऊँ। वह जिनदत्त के घर से बाहर निकल आया। निकलकर अपने घर आया। घर आकर सुकुमालिका पुत्री को बुलाया और उसे अपनी गोद में बिठलाया। फिर उसे इस प्रकार कहा
___'हे पुत्री ! सागरदारक ने तुझे त्याग दिया तो क्या हो गया? अब तुझे मैं ऐसे पुरुष को दूंगा, जिसे तू इष्ट कान्त, प्रिय और मनोज्ञ होगी।' इस प्रकार कहकर सुकुमालिका पुत्री को इष्ट वाणी द्वारा आश्वासन दिया। आश्वासन देकर उसे विदा किया। सुकुमालिका का पुनर्विवाह
५९-तए णं सागरदत्ते सत्थवाहे अन्नया उप्पिं आगासतलगंसि सुहनिसण्णे रायमग्गं आलोएमाणे आलोएमाणे चिट्ठइ।तए णं से सागरदत्ते एगं महं दमगपुरिसं पासइ, दंडिखंडनिवसणं खंडमल्लग-खंडघडगहत्थगयं फुट्टहडाहडसीसं मच्छियासहस्सेहिं जाव अनिजमाणमग्गं।
__ तत्पश्चात् सागरदत्त सार्थवाह किसी समय ऊपर भवन की छत पर सुखपूर्वक बैठा हुआ बार-बार राजमार्ग को देख रहा था। उस समय सागरदत्त ने एक अत्यन्त दीन भिखारी पुरुष को देखा। वह साँधे हुए