Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा
कृष्ण वासुदेव से यह आश्वासन पाने के पश्चात् कुन्ती देवी, उनसे विदा होकर जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई।
१६७–तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी'गच्छहणंतुब्भेदेवाणुप्पिया! बारवइंनयरि, एवं जहा पंडूतहा घोसणं घोसावेइ, जाव पच्चप्पिणंति, पंडुस्स जहा।
कुन्ती देवी के लौट जाने पर कृष्ण वासुदेव ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर उनसे कहा-'देवानुप्रियो! तुम द्वारका में जाओ' इत्यादि कहकर द्रौपदी के विषय में घोषणा करने का आदेश दिया। जैसे पाण्डु राजा ने घोषणा करवाई थी, उसी प्रकार कृष्ण वासुदेव ने भी करवाई। यावत् उनकी आज्ञा कौटुम्बिक पुरुषों ने वापिस की। सब वृत्तान्त पाण्डु राजा के समान कहना चाहिए।
१६८-तए णं से कण्हे वासुदेवे अन्नया अंतो अंतेउरगए ओरोहे जाव विहरइ। इमंच णं कच्छुल्लए जाव समोवइए जाव णिसीइत्ता कण्हं वासुदेवं कुसलोदंतं पुच्छइ।
___ तत्पश्चात् किसी समय कृष्ण वासुदेव अन्त:पुर के अन्दर रानियों के साथ रहे हुए थे। उसी समय वह कच्छुल्ल नारद यावत् आकाश से नीचे उतरे। यावत् कृष्ण वासुदेव के निकट जाकर पूर्वोक्त रीति से आसन पर बैठकर कृष्ण वासुदेव से कुशल वृत्तान्त पूछने लगे।
१६९-तए णं से कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लंणारयं एवं वयासी-'तुमंणं देवाणुप्पिया! बहूणि गामागर जाव' अणुपविससि, तं अत्थि याई ते कहिं वि दोवईए देवीए सुईं वा जाव उवलद्धा?'
तएणं से कच्छुल्ले णारयं कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवंखलु देवाणुप्पिया! अन्नया धायईसंडे दीवे पुरथिमद्धं दाहिणद्धभरहवासं अमरकंकारायहाणिं गए, तत्थ णं मए पउमनाभस्स रण्णो भवणंसि दोवई देवी जारिसिया दिट्ठपुव्वा यावि होत्था।' ।
___तए णं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लं णारयं एवं वयासी-'तुब्भं चेवणं देवाणुप्पिया! एवं पुव्वकम्म।'
तए णं से कच्छुल्लनारए कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे उप्पयणिं विजं आवाहेइ, आवाहित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने कच्छुल्ल नारद से कहा-'देवानुप्रिय! तुम बहुत-से ग्रामों, आकरों, नगरों आदि में प्रवेश करते हो, तो किसी जगह द्रौपदी देवी की श्रुति आदि कुछ मिली है?'
तब कच्छुल्ल नारद ने कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहा–'देवानुप्रिय! एक बार मैं धातकीखण्ड द्वीप में, पूर्व दिशा के दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र में अमरकंका नामक राजधानी में गया था। वहाँ मैंने पद्मनाभ राजा के भवन में द्रौपदी देवी जैसी (कोई महिला) देखी थी।'
१. अ. १६ सूत्र १३९