Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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४८६]
[ज्ञाताधर्मकथा डिभियाण य कुमाराण य कुमारीण य अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ, एवं वट्टए आडोलियाओ तेंदूसए पोत्तुल्लए साडोल्लए, अप्पेगइयाणं आभरणमल्लालंकारं अवहरइ, अप्पेगइए आउसइ, एवं अवहसइ, निच्छोडेइ, निब्भच्छेइ, तज्जेंइ, अप्पेगइए तालेइ।
____ उस समय वह चिलात दास-चेटक उन बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों, और कुमारियों में से किन्हीं की कौड़ियाँ हरण कर लेता–छीन लेता या चुरा लेता था। इसी प्रकार वर्तक (लाख के गोले) हर लेता, आडोलिया (गेंद) हर लेता, दड़ा (बड़ी गेंद), कपड़ा और साडोल्लक (उत्तरीय वस्त्र) हर लेता था। किन्हीं-किन्हीं के आभरण, माला और अलंकार हरण कर लेता था। किन्हीं पर आक्रोश करता, किसी की हँसी उड़ाता, किसी को ठग लेता, किसी की भर्त्सना करता, किसी की तर्जना करता और किसी को मारतापीटता था। तात्पर्य यह है कि वह दास-चेटक बहुत शैतान था। दास-चेटक की शिकायतें
५-तए णं ते बहवे दारगा य दारिया य डिंभया य डिभिया य कुमारा य कुमारिगा य रोयमाणा य कंदमाणा य सोयमाणा य तिप्पमाणा य विलवमाणा य साणं-साणं अम्मा-पिऊणं णिवेदेति।
तए णं तेसिं बहूणं दारगाण य दारिगाण य डिंभाण य डिभियाण य कुमाराण य कुमारियाण य अम्मापियरो जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धण्णं सत्थवाह बहूहिं खिजणाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा य उवलंभेमाणा य धण्णस्स एयमढें णिवेदेति।
___तब वे बहुत-से लड़के, लड़कियां, बच्चे, बच्चियाँ, कुमार और कुमारिकाएँ रोते हुए, चिल्लाते हुए, शोक करते हुए, आँसू बहाते हुए, विलाप करते हुए जाकर अपने-अपने माता-पिताओं से चिलात की करतूत कहते थे।
उस समय बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चे, बच्चियों, कुमारों और कुमारिकाओं के मातापिता धन्य-सार्थवाह के पास आते। आकर धन्य-सार्थवाह को खेदजनक वचनों से, रुंआसे होकर उलाहनाभरे वचनों से खेद प्रकट करते, रोते और उलाहना देते थे और धन्य-सार्थवाह को यह वृत्तान्त कहते थे।
६-तए णं धण्णे सत्थवाहे चिलायं दासचेडं एयमटुं भुजो भुजो णिवारेति, णो चेव णं चिलाए दासचेडे उवरमइ। तए णं से चिलाए दासचेडे तेसिं बहूणं दारगाण य दारिगाण य डिंभयाण य डिभियाण य कुमारगाण य कुमारिगाण य अप्पेगइयाणंखुल्लए अवहरइ जाव तालेइ।
तत्पश्चात् धन्य-सार्थवाह ने चिलात दास-चेटक को इस बात के लिए बार-बार मना किया, मगर चिलात दास-चेटक रुका नहीं, माना नहीं। धन्य सार्थवाह के रोकने पर भी चिलात दास-चेटक उन बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमार और कुमारिकाओं में से किन्हीं की कौड़ियाँ हरण करता रहा और किन्हीं को यावत् मारता-पीटता रहा।