Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 588
________________ द्वितीय श्रुतस्कन्ध: तृतीय वर्ग ] [ ५३५ था। उसकी इलश्री पत्नी थी। इला पुत्री थी। शेष वृत्तान्त काली देवी के समान । विशेष यह है कि इला आर्या शरीर त्याग कर धरणेन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में उत्पन्न हुई। उसकी आयु अर्द्धपल्योपम से कुछ अधिक है। शेष वृत्तान्त पूर्ववत् । ....निक्खेवओ पढमज्झयणस्स । ५५ – एवं खलु यहाँ प्रथम अध्ययन का निक्षेप - उपसंहार कह लेना चाहिए। २-६ अज्झयणाणि (२-६ अध्ययन ) ५६ - एवं कमा सतेरा, सोयामणी, इंदा, घणा, विज्जुया वि; सव्वाओ एयाओ धरणस्स अग्गमहिसीओ। इसी क्रम से (१) सतेरा, (२) सौदामिनी (३) इन्द्रा (४) घना और (५) विद्युता, इन पाँच देवियों के पाँच अध्ययन समझ लेने चाहिएँ । ये सब धरणेन्द्र की अग्रमहिषियाँ हैं । विवेचन - किन्हीं - किन्हीं प्रतियों में कमा (क्रमा) को पृथक् नाम माना गया है और 'घणा विज्जुया' इन दो के स्थानों पर 'घनविद्युता' एक नाम मान कर पांच की पूर्ति की गई है। एक प्रति में 'कमा ' पृथक् और 'घणा' तथा 'विज्जुआ' को भी पृथक् स्वीकार किया है, किन्तु ऐसा मानने पर एक नाम अधिक हो जाता है, जो समीचीन नहीं है । ७-१२ अज्झयणाणि ( ७-१२ अध्ययन ) ५७ – एवं छ अज्झयणा वेणुदेवस्स वि अविसेसिया भाणियव्वा । - इसी प्रकार छह अध्ययन, बिना किसी विशेषता के वेणु देव के भी कह लेने चाहिए। १३-५४ अज्झयणणि ( १३-५४ अध्ययन) ५८ - एवं जाव [ हरिस्स अग्गिसिहस्स पुण्णस्स जलकंतस्स अमियगतिस्स वेलंबस्स ] घोसस्स वि एए चेव छ-छ अज्झयणा । इसी प्रकार [हरि, अग्निशिख, पूर्ण, जलकान्त, अमितगति वेलम्ब और ] घोष इन्द्र की पटरानियों के भी यही छह-छह अध्ययन कह लेने चाहिएँ । ५९ – एवमेते दाहिणिल्लाणं इंदाणं चउप्पण्णं अज्झयणा भवंति । सव्वओ वि वाणारसीए महाकामवणे चेइए। तइयवग्गस्स निक्खेवओ । इस प्रकार दक्षिण दिशा के इन्द्रों के चौपन अध्ययन होते हैं। ये सब वाणारसी नगरी के महाकामवन नामक चैत्य में कहने चाहिएँ । यहाँ तीसरे वर्ग का निक्षेप भी कह लेना चाहिए, अर्थात् भगवान् ने तीसरे वर्ग का यह अर्थ कहा है। ॥ तृतीय वर्ग समाप्त ॥

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