Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ अध्ययन : सुंसुमा ]
[४९१ तत्पश्चात् उन पाँच सौ चोरों ने एक दूसरे को बुलाया (सब इकट्ठे हुए)। तब उन्होंने आपस में कहा-'देवानुप्रियो! हमारा चोरसेनापति विजय कालधर्म (मरण) से संयुक्त हो गया है और विजय चोरसेनापति ने इस चिलात तस्कर को बहुत-सी चोरविद्याएं आदि सिखलाई हैं। अतएव देवानुप्रियो! हमारे लिए यही श्रेयस्कर होगा कि चिलात तस्कर का सिंहगुफा चोरपल्ली के चोरसेनापति के रूप में अभिषेक किया जाय।' इस प्रकार कह कर उन्होंने एक दूसरे की बात स्वीकार की। चिलात तस्कर को सिंहगुफा चोरपल्ली के चोरसेनापति के रूप में अभिषिक्त किया। तब वह चिलात चोरसेनापति हो गया तथा विजय के समान ही अधार्मिक, क्रूरकर्मा एवं पापाचारी होकर रहने लगा।
१९-तए णं से चिलाए चोरसेणावई चोरणायगे जाव' कुडंगे याविहोत्था।से णं तत्थ सीहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाण य एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जावरायगिहस्स दाहिण पुरच्छिमिल्लं जणवयं जाव णित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहरइ।
वह चिलात चोरसेनापति चोरों का नायक यावत् कुडंग (बाँस की झाड़ी) के समान चोरों-जारों आदि का आश्रयभूत हो गया। वह उस सिंहगुफा नामक चोरपल्ली में पाँच सौ चोरों का अधिपति हो गया, इत्यादि विजय चोर के वर्णन के समान समझना चाहिए। यावत् वह राजगृह नगर के दक्षिण-पूर्व के जनपद निवासी जनों को स्थानहीन और धनहीन बनाने लगा।
२०-तए णं से चिलाए चोरसेणावई अन्नया कयाई विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता पंच चोरसए आमंतेइं। तओ पच्छा बहाए कलबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहिं पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च जाव [मजं च मंसंच सीधुंच] पसण्णं च आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ।जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणंधूव-पुष्फ-गंध-मल्लालंकारेणंसक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारित्तासम्माणित्ताएवं वयासी
तत्पश्चात् चिलात चोरसेनापति ने एक बार किसी समय विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवा कर पाँच सौ चोरों को आमंत्रित किया। फिर स्नान तथा बलिकर्म करके भोजन-मंडप में उन पाँच सौ चोरों के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का तथा सुरा (मद्य, मांस, सीधु तथा) प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, वितरण एवं परिभोग करने लगा। भोजन कर चुकने के पश्चात् पाँच सौ चोरों का विपुल धूप, पुष्प, गंध, माला और अलंकार से सत्कार किया, सम्मान किया। सत्कार-सम्मान करके उनसे इस प्रकार कहाधन्य-सार्थवाह के घर की लूट : धन्य-कन्या का अपहरण
___२१–एवं खलु देवाणुप्पिया! रायगिहे णयरे धण्णे णामं सत्थवाहे अड्ढे, तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा णामं दारिया यावि होत्था अहीणा जाव सुरूवा।तं गच्छामोणं देवाणुप्पिया! धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहं विलुपामो।तुब्भं विपुले धणकणग जाव [रयण-मणि-मोत्तिय-संख] सिलप्पवाले, ममं सुंसुमा दारिया।'
__ तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स चोरसेणावइस्स एयमटुं पडिसुणेत्ति। १. अ. १८ सूत्र १२ २. देखिए, द्वितीय अध्ययन