Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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जाम
४७६]
[ज्ञाताधर्मकथा गंधेसु णो सज्जइ, से णं इहलोगे चेव बहूणं समणाणं समणीणं सावयाणं सावियाणं अच्चणिजे जाव[चाउरंतसंसारकंतारं ] वीइवयइ।
___ इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो! हमारा जो साधु या साध्वी शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध में आसक्त नहीं होता, वह इस लोक में बहुत साधुओं, साध्वियों, श्रावकों और श्राविकाओं का पूजनीय होता है
और इस चातुर्गतिक संसार-कान्तार को पार कर जाता है। विषयलोलुपता का दुष्परिणाम
२४-तत्थ णं अत्थेगइया आसा जेणेव उक्किट्ठ सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा उवागच्छंति उवागच्छित्ता तेसु उक्किट्ठेसु सद्द-फरिस-रूव-गंधेसुमुच्छिया जाव अज्झोववण्णा आसेविउं पयत्ता यावि होत्था। तए णं ते आसा एए उक्किट्ठ सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा आसेवमाणा तेहिं बहूहिं कूडेहि य पासेहि य गलएसु य पाएसु य बझंति।
उन घोड़ों में से कितनेक घोड़े जहाँ वे उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध थे, वहाँ पहुँचे। वहाँ पहुँच कर वे उन उत्कृष्ट शब्द, रस, रूप और गंध में मूर्च्छित हुए, अति आसक्त हो गए और उनका सेवन करने में प्रवृत्त हो गए। तत्पश्चात् उस उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध का सेवन करने वाले वे अश्व कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बहुत से कूट पाशों (कपट से फैलाए गए बंधनों) से गले में यावत् पैरों में बाँधे गएबंधनों से बाँधे गए-पकड़ लिए गए।
. २५-तए णं ते कोडुंबिया एए आसे गिडंति, गिण्हित्ता एगट्ठियाहिं पोयवहणे संचारेंति, संचारित्ता तणस्स कट्ठस्स जाव' भरेंति।
तएणं ते सत्ताणावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणंवाएणंजेणेव गंभीरपोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबिता ते आसे उत्तारेंति, उत्तारित्ता जेणेव हत्थिसीसे णयरे, जेणेव कणगकेऊ राया, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव वद्धावेंति वद्धावित्ता ते आसे उवणेति।
तए णं से कणगकेऊ राया तेसिं संजत्ताणावावाणियगाणं उस्सुक्कं वियरइ, वियरित्ता सक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारित्ता संमाणित्ता पडिविसज्जेइ।
तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उन अश्वों को पकड़ लिया। पकड़ कर वे नौकाओं द्वारा पोतवहन में ले आये। लाकर पोतवहन को तृण, काष्ठ आदि आवश्यक पदार्थों से भर लिया।
तत्पश्चात् वे सांयात्रिक नौकावणिक् दक्षिण दिशा के अनुकूल पवन द्वारा जहाँ गंभीर पोतपट्टन था, वहाँ आये। आकर पोतवहन का लंगर डाला। लंगर डाल कर उन घोड़ों को उतारा। उतार कर जहाँ हस्तिशीर्ष नगर था और जहाँ कनककेतु राजा था, वहाँ पहुँचे। पहुँच कर दोनों हाथ जोड़कर राजा का अभिनन्दन किया अभिनन्दन करके वे अश्व उपस्थित किये।
राजा कनककेतु ने उन सांयात्रिक वणिकों का शुल्क माफ कर दिया। उनका सत्कार-सम्मान १. अ. १७ सूत्र १६