Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ अध्ययन : सुंसुमा
सार : संक्षेप
सुंसुमा! सोने के पलने में झूली, सुख में पली, राजगृह नगर के धन्य-सार्थवाह की लाड़ली कुमारी कितनी अभागिनी! कैसा करुण अन्त हुआ उसके जीवन का!
धन्य-सार्थवाह के पाँच पुत्रों के पश्चात् उसका जन्म हुआ था। जब वह छोटी थी तब चिलात (किरात) दास उसे अड़ौस-पड़ोस के बच्चों के साथ खेलाया करता था, यही उसका मुख्य काम था। चिलात बड़ा ही नटखट था, बहुत उदंड और दुष्ट। खेल के समय वह बालक-बालिकाओं को बहुत सताता था। बहुत बार वह उनकी कौड़ियाँ छीन लेता, लाख के गोले छिपा लेता, वस्त्र हरण कर लेता। कभी उन्हें धमकाता, मारता, पीटता। उसके मारे बालकों का नाकों दम था। वे घर जाकर अपने माता-पिता से उसकी शिकायत करते। धन्य सेठ उसे डाँटते मगर वह अपनी आदत से बाज न आया। उसकी हरकतें बढ़ती गई।
एक बार बालकों के अभिभावक जब बहुत क्रुद्ध हुए, रुष्ट हुए, तब धन्य-सार्थवाह ने चिलात को खरी-खोटी सुना कर अपने घर से निकाल दिया।
चिलात जब पूरी तरह स्वच्छंद और निरंकुश हो गया। उसे कोई रोकने वाला या फटकारने वाला नहीं था। अतएव वह जुआ के अड्डों में, मदिरालयों में, वेश्यागृहों में इधर-उधर भटकने लगा। उसके जीवन में सभी प्रकार के दुर्व्यसनों ने अड्डा जमा लिया।
राजगृह से कुछ दूरी पर सिंहगुफा नामक एक चोरपल्ली थी। उसमें पाँच सौ चोरों के साथ उनका सरदार विजय नामक चोर रहता था। चिलात उस चोर-पल्ली में जा पहुंचा। वह बड़ा साहसी, बलिष्ठ और निर्भीक तो था ही, विजय ने उसे चोरकलाएँ चोरविद्याएँ और चोरमंत्र सिखला कर चौर्य-कला में निष्णात कर दिया। विजय की मृत्यु के पश्चात् वह चोरों का सरदार-सेनापति भी बन गया।
तिरस्कृत करके घर से निकाल देने के कारण धन्य-सार्थवाह के प्रति उसके मन में प्रतिशोध की भावना थी। कदाचित् सुंसुमा पर उसकी प्रीति थी किन्तु उसके जीवन की अपवित्रता ने उस प्रीति को भी अपवित्र बना दिया था। जो भी कारण हो, उसने एक बार सब साथियों को एकत्र करके धन्य का घर लूटने का निश्चय प्रकट किया। सब साथी उससे सहमत हो गए। चिलात ने कहा-लूट में जो धन मिलेगा वह सब तुम्हारा होगा, केवल सुंसुमा लड़की मेरी होगी।
निश्चयानुसार एक रात्रि में धन्य-सार्थवाह के घर डाका डाला गया। प्रचुर सम्पत्ति और सुंसुमा को लेकर चोर जब वापिस लौट गए तो धन्य सेठ, जो कहीं छिपकर अपने प्राण बचा पाया था, नगर-नक्षकों के यहाँ गया। समग्र वृत्तान्त सुनकर नगर-रक्षकों ने सशस्त्र होकर चोरों का पीछा किया। धन्य और उसके पांचों पुत्र भी साथ चले।