Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सत्रहवाँ अध्ययन : आकीर्ण ]
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तत्पश्चात् कनककेतु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा- ' -'देवानुप्रियो ! तुम सांयात्रिक वणिकों के साथ जाओ और कालिकद्वीप से मेरे लिए अश्व ले आओ।' उन्होंने भी राजा का आदेश अंगीकार किया। तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुषों ने गाड़ी-गाड़े सजाए। सजा कर उनमें बहुत-सी वीणाएँ, वल्लकी, भ्रामरी, कच्छरी, भंभा, षट्भ्रमरी आदि विविध प्रकार की वीणाओं तथा विचित्र वीणाओं से और श्रोत्रेन्द्रिय के योग्य अन्य बहुत सी वस्तुओं (कानों को प्रिय लगने योग्य सामग्री -साधनों) से गाड़ी - गाड़े भर लिये ।
१५ – भरित्ता बहूणं किण्हाय य जाव [ नीलाण य लोहियाण य हालिद्दाण य] सुक्किल्लाण य कट्टकम्माण य [ चित्तकम्माण य पोत्थकम्माण य लेप्पकम्माण य ] गंथिमाण य जाव [ वेढिमाण य पूरिमाण य ] संघाइमाण य अन्नेसिं च बहूणं चक्खिदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति ।
भरित्ता बहूणं कोट्ठपुडाण य केयइपुडाण य जाव [ पत्तपुडाण य चोयपुडाण य तगर - पुडाण य एलापुडाण य हिरिवेरपुडाण य उसीरपुडाण य चंपगपुडाण य मरुयपुडाण य दमणगपुडाण य जाइपुडाण य जुहियापुडाण य मल्लियपुडाण य वासंतियपुडाण य कप्पूरपुडाण य पाडलपुडाण य] अन्नेसिं च बहूणं घाणिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति ।
भरित्ता बहुस्स खंडस्स य गुलस्स य सक्कराए य मच्छंडियाए य पप्फुत्तरपउमुत्तर अन्नेसिं च जिब्भिदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति ।
रित्ता बहू कोयवयाण य कंबलाण य पावरणाण य नवतयाण य मलयाण य मसगाण य सिलावट्टा यजाव हंसगब्भाण य अन्नेसिं च फासिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति । श्रोत्रेन्द्रिय के योग्य (प्रिय) वस्तुएँ भर कर बहुत-से कृष्ण वर्ण वाले, [नील, रक्त, पीत एवं ] शुक्ल वर्ण वाले काष्ठकर्म (लकड़ी के पटिये पर चित्रित चित्र), चित्रकर्म, पुस्तकर्म (पुट्ठे पर बनाए चित्र ), कर्म (मृत्तिका के बनाए चित्र-विचित्र रूप) तथा वेढ़िम, पूरिम तथा संघातिम एवं अन्य चक्षु - इन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी-गाड़ों में भरे ।
यह भर कर बहुत-से कोष्ठपुट' (कोष्ठपुट में जो पकाये जाते हैं वे वास - सुगंधित द्रव्य विशेष) इसी प्रकार केतकीपुट, पत्रपुट, चोय-त्वक्पुट, तगरपुट, एलापुट, ह्रीवेर (बालक) पुट, उशीर (खसखस का मूल अथवा एक विशिष्ट पुष्पजाति) पुट, चम्पकपुट, मरुक (मरुआ) पुट, दमनकपुट, जाती (चमेली ) पुट, यूथिकापुट, मल्लिकापुट, वासंतीपुट, कपूरपुट, पाटलपुट तथा अन्य बहुत-से घ्राणेन्द्रिय को प्रिय लगने वाले पदार्थों से गाड़ी-गाड़े भरे ।
तदनन्तर बहुत-से खांड, गुड़, शक्कर, मत्स्यंडिका ( विशिष्ट प्रकार की शक्कर), पुष्पोत्तर (शर्करा - विशेष) तथा पद्मोत्तर जाति की शर्करा आदि अन्य अनेक जिह्वा - इन्द्रिय के योग्य द्रव्य गाड़ी-गाड़ों में भरे । उसके बाद बहुत-से कोयतक- रुई के बने वस्त्र, कंबल - रत्न - कंबल, प्रावरण - ओढ़ने के वस्त्र, नवत — जीन, मलय - विशेष प्रकार का आसन अथवा मलय देश में बने वस्त्र, मसग - चर्म से मढ़े एक प्रकार के वस्त्र, शिलापट्टक - चिकनी शिलाएँ यावत् हंसगर्भ (श्वेत वस्त्र ) तथा अन्य स्पर्शेन्द्रिय के योग्य
१. कोष्ठपुटे पच्यन्ते ते कोष्ठपुटाः वासविशेषाः - अभयदेवटीका ।