Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा हरिरेणु-सोणिसुत्तग-सकविल-मज्जार-पायकुक्कुड-वोंडसमुग्गयसामवण्णा। गोहूमगोरंग-गोरपाडलगोरा, पवालवण्णा य धूमवण्णा य केइ ॥१॥ तलपत्त-रिट्ठवण्णा य, सालिवण्णा य भासवण्णा य केइ। जंपिथ-तिल-कीडगा य, सोलोयरिट्ठगा य पुंडपइया य कणगपिट्ठा य केइ ॥२॥ चक्कागपिट्ठवण्णा सारसवण्णा य हंसवण्णा य केइ। केइत्थ अब्भवण्णा पक्कतल-मेघवण्णा य बाहुवण्णा य ॥३॥ संझाणुरागसरिसा सुयमुह-गुंजद्धराग-सरिसत्थ केइ। एला-पाडलगोरा सामलया-गवलसामला पुणो केइ ॥४॥
बहवे अण्णे अणिद्देसा, समा कासीसरत्त-पीया, अच्वंत विसुद्धा वि य णं आइण्णग-जाइ-कुल-विणीय-गयमच्छरा। हयवरा जहोवएस-कम्मवाहिणो वि य णं सिक्ख विणीयविणया, लंघण - वग्गण - धावण - तिवई - जईण - सिक्खियगई।
किं ते? मणसा वि उव्विहंताई अणेगाई आससयाइं पासंति॥ भावार्थ-कालिक-द्वीप में पहुंचने पर नौका-वणिकों ने चांदी, सोने, रत्नों और हीरों की खानों के साथ विविध वर्ण वाले अश्वों की भी देखा। उन अश्वों में कोई-कोई नीले वर्ण की रेणु के समान, श्रोणिसूत्रक अर्थात् बालकों की कमर में बाँधने के काले डोरे के समान तथा मार्जार, पादुकुक्कुट [विशेष जाति का कुकड़ा] एवं कच्चे कपास के फल के समान श्याम वर्ण वाले थे। कोई गेहूँ और पाटल पुष्प के समान गौर वर्ण वाले थे, कोई विद्रुम-मूंगा के समान अथवा नवीन कोंपल के सदृश रक्तवर्ण-लाल थे, कोई धूम्रवर्णपाण्डुर धुंए जैसे रंग के थे।
कोई तालवृक्ष के पत्तों के सरीखे तो कोई रिष्ठा-मदिरा सरीखे वर्ण वाले थे। कोई शालिवर्ण-चावल जैसे रंग वाले और कोई भस्म जैसे रंग वाले थे। कोई पुराने तिलों की कीड़ों जैसे, कोई चमकदार रिष्टक रत्न जैसे वर्ण वाले, कोई धवल श्वेत पैरों वाले, कोई कनकपृष्ठ-सुनहरी पीठ वाले थे।
कोई सारस पक्षी की पीठ, चक्रवाक एवं हंस के समान श्वेत थे। कोई मेघ-वर्ण और कोई तालवृक्ष के पत्तों के समान वर्ण वाले थे। कोई रंगबिरंगे अर्थात् अनेक रंगों वाले थे। . कोई संध्याकाल की लालिमा, तोते की चोंच तथा गुंजा [चिरमी] के अर्धभाग के सदृश लाल थे, कोई एला-पाटल या एला और पाटल जैसे रंग के थे। कोई प्रियंगु-लता और महिषशृंग के समान श्यामवर्ण थे।
___कोई-कोई अश्व ऐसे थे कि उनके वर्ण का निर्देश-कथन ही नहीं किया जा सकता, जैसे कोई श्यामाक (धान्य विशेष), कासीस (एक रक्तवर्ण द्रव्य), रक्त और पीत थे-अर्थात् चितकबरे (अनेक रंगों के) थे। वे अश्व विशुद्ध-निर्दोष थे। आकीर्ण अर्थात् वेगवत्ता आदि गुणों वाली जाति एवं कुल के थे। विनीत, प्रशिक्षित (ट्रेनिंग पाए हुए) थे एवं परस्पर असहनशीलता से रहित थे-जैसे अन्य अश्व दूसरे अश्वों को सहन नहीं करते, एक दूसरे के निकट आते ही लड़ने लगते हैं, वैसे वे अश्व नहीं थे, सहनशील थे। वे अश्व-प्रवर थे, प्रशिक्षण के अनुसार ही गमन करते थे। गड्ढा आदि को लांघने में, कूदने में, दौड़ने में, धोरण अर्थात् गतिचातुर्य में, त्रिपदी-रंगभूमि में मल्ल की-सी गति करने में कुशल थे। न केवल शरीर से ही वरन् मन से भी