Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा पद्मनाभ का द्रौपदी को भोग-आमंत्रण
१५४-तए णं से पउमणाभे राया ण्हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए अंतेउरपरियालसंपरिवुडे जेणेव असोगवणिया, जेणेव दोवई देवी, तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता दोवइं देविं ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-किं णं तुमं देवाणुप्पिए! ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि ? एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए! मम पुव्वसंगतिएणं देवेणं जंबुद्दीवाओ दीवाओ, भारहाओ यासाओ, हत्थिणाउराओ नयराओ, जुहिट्ठिलस्स रण्णो भवणाओ साहरिया, तंमा णं तुमं देवाणुप्पिए! ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि।तुम मए सद्धिं विपुलाइं भोगभोगाई जाव [ भुंजमाणी] विहराहि।'
__तदनन्तर राजा पद्मनाभ स्नान करके, यावत् सब अलंकारों से विभूषित होकर तथा अन्तःपुर के परिवार से परिवृत होकर, जहाँ अशोकवाटिका थी और जहाँ द्रौपदी देवी थी, वहाँ आया। आकर उसने द्रौपदी देवी को भग्नमनोरथ एवं चिन्ता करती देख कर कहा-'देवानुप्रिये! भग्नमनोरथ होकर चिन्ता क्यों कर रही हो? देवानुप्रिये! मेरा पूर्वसांगतिक देव जम्बूद्वीप से, भारतवर्ष से, हस्तिनापुर नगर से और युधिष्ठिर राजा के भवन से संहरण करके तुम्हें यहाँ ले आया है। अतएव देवानुप्रिये! तुम हतमनः संकल्प होकर चिन्ता मत करो। तुम मेरे साथ विपुल भोगने योग्य भोग भोगती हुई रहो।
१५५-तएणंसा दोवई देवी पउमणाभं एवंवयासी-‘एवं खलु देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वारवईए नयरीए कण्हे णामं वासुदेवे मम पियभाउए परिवसइ, तं जइ णं से छण्हं मासाणं ममंकूवंहव्वमागच्छइ तए णं अहं देवाणुप्पिया! जंतुमं वदसि तस्स आणा-ओवायवयण णिद्देसे चिट्ठिस्सामि।'
तब द्रौपदी देवी ने पद्मनाभ से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रिय! जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में द्वारवती नगरी में कृष्ण नामक वासुदेव मेरे स्वामी के भ्राता रहते हैं। सो यदि छह महीनों तक वे मुझे छुड़ाने-सहायता करने या वापिस ले जाने के लिए यहाँ नहीं आएंगे तो मैं, हे देवानुप्रिय! तुम्हारी आज्ञा, उपाय, वचन और निर्देश में रहूँगी, अर्थात् आप जो कहेंगे, वही करूँगी।'
१५६-तए णं से पउमे राया दोवईए एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता दोवइं देविं कण्णंतेउरेठवेइ।तएणंसा दोवई देवी छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएणंतवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणी विहरई।
तब पद्मनाभ राजा ने द्रौपदी का कथन अंगीकार किया। अंगीकार करके द्रौपदी देवी को कन्याओं के अन्तःपुर में रख दिया। तत्पश्चात् द्रौपदी देवी निरन्तर षष्ठभक्त और पारणा में आयंबिल के तपःकर्म से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी।
विवेचन-द्रौपदी, छह महीने तक श्रीकृष्ण यदि लेने न आएँ तो पद्मनाभ की आज्ञा मान्य करने की तैयारी बतलाती है। इस तैयारी के पीछे द्रौपदी की मानसिक दुर्बलता या चारित्रिक शिथिलता है, ऐसा किसी को आभास हो सकता है। किन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। द्रौपदी को कृष्ण के असाधारण सामर्थ्य पर पूरा विश्वास है। वह जानती है कि कृष्णजी आए बिना रह नहीं सकते। इसी कारण उसने पाण्डवों का उल्लेख न