Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी]
[४२१ कटु तहेव समोसरह।'
- तत्पश्चात् (प्रथम दूत को द्वारिका भेजने के तुरन्त बाद में) द्रुपद राजा ने दूसरे दूत को बुलाया। बुलाकर उससे कहा-'देवानुप्रिय! तुम हस्तिनापुर नगर जाओ। वहाँ तुम पुत्रों सहित पाण्डु राजा को- उनके पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को, सौ भाइयों समेत दुर्योधन को, गांगेय, विदुर, द्रोण, जयद्रथ, शकुनि, क्लीव (कर्ण), और अश्वत्थामा को दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि करके उसी प्रकार (पहले के समान) कहना, यावत्-समय पर स्वयंवर में पधारिए।
९६-तए णं से दूए एवं वयासी जहा वासुदेवे, नवरं भेरी नत्थि, जावजेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तत्पश्चात् दूत ने हस्तिनापुर जाकर उसी प्रकार कहा जैसा प्रथम दूत ने श्रीकृष्ण को कहा था। तब जैसा कृष्ण वासुदेव ने किया, वैसा ही पाण्डु राजा ने किया। (विशेषता यह है कि हस्तिनापुर में भेरी नहीं थी। अतएव दूसरे उपाय से सब को सूचना देकर और साथ लेकर पाण्डु राजा भी) कांपिल्यपुर नगर की ओर गमन करने को उद्यत हुए। अन्य दूतों का अन्यत्र प्रेषण
९७-एएणेव कमेणं तच्चं दूयं चंपानयरि, तत्थ णं तुमंकण्हं अंगरायं, सेल्लं, नंदिरायं करयल तेहेव जाव समोसरह।
इसी क्रम से तीसरे दूत को चम्पा नगरी भेजा और उससे कहा-तुम वहाँ जाकर अंगराज कृष्ण को, सेल्लक राजा को और नंदिराज को दोनों हाथ जोड़कर यावत् कहना कि स्वयंवर में पधारिए।
९८-चउत्थं दूयं सुत्तिमइं नयरि, तत्थ णं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसयसंपरिवुडं करयल तहेव जाव समोसरह।
चौथा दूत शुक्तिमती नगरी भेजा और उसे आदेश दिया-तुम दमघोष के पुत्र और पाँच सौ भाइयों से परिवृत शिशुपाल राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना-यावत् स्वयंवर में पधारिए।
९९-पंचमगं दूयं हत्थिसीसनगरं, तत्थ णं तुमं दमदंतं नाम रायं करयल तहेव जाव समोसरह।
पाँचवाँ दूत हस्तीशीर्ष नगर भेजा और कहा-तुम दमदंत राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना यावत् स्वयंवर में पधारिए।
१००-छठें दूयं महुरं नयरि, तत्थ णं तुमं धरं रायं करयल तहेव जाव समोसरह।
छठा दूत मथुरा नगरी भेजा। उससे कहा-तुम धर नामक राजा को हाथ जोड़कर यावत् कहनास्वयंवर में पधारिये।
१०१–सत्तमं दूयं रायगिहं नगरं, तत्थ णं तुमं सहदेवं जरासिंधुसुयं करयल तहेव जाव समोसरह।
___ सातवाँ दूत राजगृह नगर भेजा। उससे कहा-तुम जरासिन्धु के पुत्र सहदेव राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना यावत् स्वयंवर में पधारिये।
१०२-अट्ठमं दूयं कोडिण्णं नयरं, तत्थ तं तुमं रुप्पिं भेसगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह।