Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी]
[४१९
शस्त्रधारी बहुत-से पुरुषों के साथ कांपिल्यपुर नगर के मध्य भाग से होकर निकला। वहाँ से निकल पर पंचाल देश के मध्य भाग में होकर देश की सीमा पर आया। फिर सुराष्ट्र जनपद के बीच में होकर जिधर द्वारवती नगरी थी, उधर चला। चलकर द्वारवती नगरी के मध्य में प्रवेश किया। प्रवेश करके जहाँ कृष्ण वासुदेव की बाहरी सभा थी, वहाँ आया। चार घंटाओं वाले अश्वरथ को रोका। रथ से नीचे उतरा। फिर मनुष्यों के समूह से परिवृत होकर पैदल चलता हुआ कृष्ण वासुदेव के पास पहुँचा। वहाँ पहुँच कर कृष्ण वासुदेव को, समुद्रविजय आदि दस दसारों को यावत् महासेन आदि छप्पन हजार बलवान् वर्ग को दोनों हाथ जोड़कर द्रुपद राजा के कथनानुसार अभिनन्दन करके यावत् स्वयंवर में पधारने का निमंत्रण दिया।
९०-तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा णिसम्म हट्ट जाव हियए तं दूयं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता पडिविसजेइ।'
तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव उस दूत से यह वृत्तान्त सुनकर और समझकर प्रसन्न हुए, यावत् वे हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने उस दूत का सत्कार किया, सम्मान किया। सत्कार-सम्मान करने के पश्चात् उसे विदा किया। स्वयंवर के लिए कृष्ण का प्रस्थान
९१-तएणं से कण्हे वासुदेव कोडुंबियपुरिसंसद्दावेइ, सहावित्ता एवंवयासी-'गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरि तालेहि।'
तए णं से कोडुंबियपुरिसे करयल जाव कण्हस्स वासुदेवस्स एयमढे पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाइयं भेरि महया सद्देणं तालेड़।
___ तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुष को बुलाया। बुला कर उससे कहा-'देवानुप्रिय! जाओ और सुधर्मा सभा में रखी हुई सामुदानिक भेरी बजाओ।'
तब उस कौटुम्बिक पुरुष ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके कृष्ण वासुदेव के इस अर्थ को अंगीकार किया। अंगीकार करके जहाँ सुधर्मा सभा में सामुदानिक भेरी थी, वहाँ आया। आकर जोर-जोर के शब्द से उसे ताड़न किया।
९२-तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महसेणपामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ ण्हाया जाव' विभूसिया जहाविभवइड्डि-सक्कारसमुदएणं अप्पेगइया जाव [ हयगया एवं गयगया रह-सीया-संदमाणीगया अप्पेगइया ] पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं वद्धावेंति।
तत्पश्चात् उस सामुदानिक भेरी के ताड़न करने पर समुद्रविजय आदि दस दसार यावत् महासेन आदि छप्पन हजार बलवान् नहा-धोकर यावत् विभूषित होकर अपने-अपने वैभव के अनुसार ऋद्धि एवं सत्कार के अनुसार कोई-कोई [अश्व पर आरूढ़ होकर, कोई-कोई हाथी पर, शिविका पर स्यंदमाणी-म्याने पर सवार होकर और कोई-कोई पैदल चल कर जहाँ कृष्ण वासुदेव थे, वहाँ पहुँचे। पहुँचकर दोनों हाथ
१. अ. १६ सूत्र ८९
२. अ. १६ सूत्र ८६