Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा आठवाँ दूत कौण्डिन्य नगर भेजा। उससे कहा-तुम भीष्मक के पुत्र रुक्मी राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो।
१०३-नवमं दूयं विराडनगरं तत्थ णं तुमं कीयगं भाउसयसमग्गं करयल तहेव जाव समोसरह।
नौवाँ दूत विराटनगर भेजा। उससे कहा-तुम सौ भाइयों सहित कीचक राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो।
१०४-दसमं दूयं अवसेसेसु य गामागरनगरेसु अणेगाइं रायसहस्साइं जाव समोसरह।
दसवाँ दूत शेष ग्राम, आकर, नगर आदि में भेजा। उससे कहा-तुम वहाँ के अनेक सहस्र राजाओं को उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो।
१०५-तए णं से दूए तहेव निग्गच्छइ, जेणेव गामागर जाव समोसरह।
तत्पश्चात् वह दूत उसी प्रकार निकला और जहाँ ग्राम, आकर, नगर आदि थे वहाँ जाकर सब राजाओं को उसी प्रकार कहा-यावत् स्वयंवर में पधारो।
१०६-तएणं ताइंअणेगा रायसहस्सा तस्स दूयस्स अंतिए एयमढें सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा तं दूयं सक्कारेंति, संमाणेति, सक्कारिन्ता संमाणित्ता पडिविसजिंति।
तत्पश्चात् अनेक हजार राजाओं ने उस दूत से यह अर्थ-संदेश सुनकर और समझकर हष्ट-तुष्ट होकर उस दूत का सत्कार-सम्मान करके उसे विदा किया।
१०७-तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेयं पत्तेयं ण्हाया संनद्धबद्धवम्मियकवया हत्थिखंधवरगया हयगयरहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडा महया भडचडगररहपहगरविंदपरिक्खित्ता सएहिं सएहिं नगरेहितो अभिनिग्गच्छंति, अभिनिग्गच्छित्ता जेणेव पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तत्पश्चात् आमंत्रित किए हुए वासुदेव आदि बहुसंख्यक हजारों राजाओं में से प्रत्येक-प्रत्येक ने स्नान किया। वे कवच धारण करके तैयार हुए और सजाए हुए श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुए। फिर घोड़ों, हाथियों, रथों और बड़े-बड़े भटों के समूह के समूह रूप चतुरंगिणी सेना के साथ अपने-अपने नगरों से निकले। निकल कर पंचाल जनपद की ओर गमन करने के लिए उद्यत हुए। स्वयंवर मंडप का निर्माण
___ १०८-तएणं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे बहिया गंगाए महानदीए अदूरसामंते एगं महं सयंवरमंडवं करेह अणेगखंभसयसन्निविट्ठे लीलट्ठियसालभंजियागं' जाव' पच्चप्पिणंति।
उस समय द्रुपद राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर उनसे कहा-'देवानुप्रियो! तुम जाओ और कांपिल्यपुर नगर के बाहर गंगा नदी से अधिक दूर और न अधिक समीप में, एक विशाल स्वयंवरमंडप बनाओ, जो अनेक सैकड़ों स्तंभों से बना हो और जिसमें लीला करती हुई पुतलियाँ बनी हों। जो प्रसन्नतानजक, सुन्दर, दर्शनीय एवं अतीव रमणीक हो।' उन कौटुम्बिक पुरुषों ने मंडप तैयार करके आज्ञा
१. अ. १ सूत्र