Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी ]
[ ४२५
द्रुपद राजा पर अनुग्रह करते हुए, स्नान करके यावत् विभूषित होकर, हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर, कोरंट वृक्ष की पुष्पमाला सहित छत्र को धारण करके, उत्तम श्वेत चामरों से बिंजाते हुए, घोड़ों, हाथियों, रथों तथा बड़े-बड़े सुभटों के समूह से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर जहाँ स्वयंवर मंडप है, वहाँ पहुँचें । वहाँ पहुँचकर अलग-अलग अपने नामांकित आसनों पर बैठें और राजवरकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करें।' इस प्रकार की घोषणा करो और मेरी आज्ञा वापिस करो।' तब वे कौटुम्बिक पुरुष इस प्रकार घोषणा करके यावत् राजा द्रुपद की आज्ञा वापिस करते हैं ।
११५ – तए णं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी – 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! सयंवरमंडवं आसियसंमज्जियोवलित्तं सुगंधवरगंधियं पंचवण्णपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवर- कुंदुरुक्क - तुरुक्क जाव' गंधवट्टिभूयं मंचाइमंचकलियं करेह । करित्ता वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं पत्तेयं पत्तेयं नामंकियाइं आसाणाई अत्य सेयवत्थ पच्चत्थुयाई रएह, रयइत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।' त्ते वि जाव पच्चप्पिणंति ।
तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को पुनः बुलाया । बुलाकर कहा - 'देवानुप्रियो ! तुम स्वयंवर-मडप में जाओ और उसमें जल का छिड़काव करो, उसे झाड़ो, लीपो और श्रेष्ठ सुगंधित द्रव्यों से सुगंधित करो। पाँच वर्ण के फूलों के समूह से व्याप्त करो । कृष्ण अगर, श्रेष्ठ कुंदुरुक्क (चीड़ा) और तुरुष्क (लोबान) आदि की धूप से गंध की वर्ती (वाट) जैसा कर दो। उसे मंचों (मचानों) और उनके ऊपर मंचों (मचानों) से युक्त करो। फिर वासुदेव आदि हजारों राजाओं के नामों से अंकित अलग-अलग आसन श्वेत वस्त्र से आच्छादित करके तैयार करो । यह सब करके मेरी आज्ञा वापिस लौटाओ।' वे कौटुम्बिक पुरुष भी सब कार्य करके यावत् आज्ञा लौटाते हैं ।
स्वयंवर
११६ – तए णं वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा कल्लं पाउप्पभायाए ण्हाया जाव विभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरंट सेयवरचामराहिं हयगय जाव' परिवुडा सव्विड्डीए जाव रवेणं जेणेव सयंवरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अणुपविसंति, अणुपविसित्ता पत्तेयं पत्तेयं नामंकिएसु आसणेसु निसीयंति, दोवई रायवरकरण्णं पडिवालेमाणा चिट्ठति ।
तत्पश्चात् वासुदेव प्रभृति अनेक हजार राजा कल (दूसरे दिन) प्रभात होने पर स्नान करके यावत् विभूषित हुए । श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुए। उन्होंने कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को धारण किया। उन पर चामर ढोरे जाने लगे। अश्व, हाथी, भटों आदि से परिवृत होकर सम्पूर्ण ऋद्धि के साथ वाद्यध्वनि के साथ जिधर स्वयंवरमंडप था, उधर पहुँचे। मंडप में प्रविष्ट हुए। प्रविष्ट होकर पृथक्-पृथक् अपने-अपने नामों से अंकित आसनों पर बैठ गये और राजवरकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करने लगे।
११७ - तए णं से दुवए राया कल्लं ण्हाए जाव निभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धारिज्जमाणेणं सेयचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे महया भडचडकर-रहपरिकरविंदपरिक्खित्ते कंपिल्लपुरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सयंवरमंडवे, जेणेव वासुदेवपामोक्खा बहवे
१. अ. १,
२. अ. १६ सूत्र ११४