Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा शय्या थी, वहाँ आ गया। आकर अपनी शय्या पर सो गया।
४९-तएणं सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी पइव्वया पइमणुरत्ता पतिं पासे अपस्समाणी तलिमाउ उद्वेइ, उद्वित्ता जेणेव से सयणिजे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सागरस्स पासे णिवजइ।
तदनन्तर सुकुमालिका पुत्री एक मुहूर्त में थोड़ी देर में जाग उठी। वह पतिव्रता थी और पति में अनुराग वाली थी, अतएव पति को अपने पार्श्व-पास में न देखती हुई शय्या से उठ बैठी। उठकर वहाँ गई जहाँ उसके पति की शय्या थी। वहाँ पहुँच कर वह सागर के पास सो गई। पति द्वारा परित्याग
५०-तए णं सागरदारए सुमालियाए दारियाए दुच्चं पि इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ, जाव अकामए अवसव्वसे मुहुत्तमित्तं संचिट्ठइ।
तए णं से सागरदारए सुमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सयणिज्जाओ उद्वेइ, उद्वित्ता वासघरस्स दारं विहाडेइ, विहाडित्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
तत्पश्चात् सागरदारक ने दूसरी बार भी सुकुमालिका के पूर्वोक्त प्रकार के अंगस्पर्श को अनुभव किया। यावत् वह बिना इच्छा के विवश होकर थोड़ी देर तक वहाँ रहा।
फिर सागरदारक सुकुमालिका को सुखपूर्वक सोई जान कर शय्या से उठा। उसने अपने वासगृह (शयनागार) का द्वार उघाड़ा। द्वार उघाड़ कर वह मरण से अथवा मारने वाले पुरुष से छुटकारा पाये काक पक्षी की तरह शीघ्रता के साथ जिस दिशा से आया था उसी दिशा में लौट गया-अपने घर चला गया।
५१-तएणंसूमालिया दारिया तओ मुहत्तंतरस्स पडिबुद्धा पइव्वया जाव' अपासमाणी सयणिज्जाओ उढेइ, सागरस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेमाणी वासघरस्स दारं विहाडियं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-'गए से सागरे' त्ति कटु ओहयमणसंकप्पा जाव [करयलपल्हत्थमुही अट्टल्झाणेवगया] झियायइ।
सुकुमालिका दारिका थोड़ी देर में जागी। वह पतिव्रता एवं पति में अनुरक्ता थी, अतः पति को अपने पास न देखती हुई शय्या से उठी। उसने सागरदारक की सब तरफ मार्गणा-गवेषणा की। गवेषणा करते करते शयनागार का द्वार खुला देखा तो कहा (मन ही मन विचार किया)-'सागर तो चल दिया!' उसके मन का संकल्प मारा गया, अतएव वह हथेली पर मुख रखकर आर्तध्यान-चिन्ता करने लगी।
__ ५२-तए णं सा भद्दा सत्थवाही कल्लं पाउप्पभायाए दासचेडियं सदावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिए! बहुवरस्स मुहसोहणियं उवणेहि।'तए णंसा दासचेडी भद्दाए एवं वुत्ता समाणी एयमटुं तह त्ति पडिसुणेइ, मुहधोवणियं गेण्हित्ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सूमालियं दारियं जाव झियायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी
१. अ. १६ सूत्र ४९