Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा तब सुकुमालिका दारिका ने यह बात स्वीकार की। स्वीकार करके भोजनशाला में विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार देती-दिलाती हुई रहने लगी।
___ उस काल और उस समय में गोपालिका नामक बहुश्रुत आर्या, जैसे तेतलिपुत्र नामक अध्ययन में सुव्रता साध्वी के विषय में कहा है, उसी प्रकार पधारी। उसी प्रकार उनके संघाड़े ने यावत् सुकुमालिका के घर में प्रवेश किया। उसी प्रकार सुकुमालिका ने यावत् आहार वहरा कर इस प्रकार कहा-'हे आर्याओ! मैं सागर के लिए अनिष्ट हूँ यावत् अमनोज्ञ हूँ। सागर मेरा नाम भी नहीं सुनना चाहता, यावत् परिभोग भी नहीं चाहता। जिस-जिस को भी मैं दी गई, उसी-उसी को अनिष्ट यावत् अमनोज्ञ हुई हूँ। आर्याओ! आप बहुत ज्ञानवाली हो। इस प्रकार पोट्टिला ने जो कहा था, वह सब यहाँ भी जानना चाहिए। यहाँ तक कि-आपने कोई मंत्र-तंत्र आदि प्राप्त किया है, जिससे मैं सागरदारक को इष्ट कान्त यावत् प्रिय हो जाऊँ? दीक्षाग्रहण
__६८-अजाओ तहेव भणंति, तहेव साविया जाया, तहेव चिंता, तहेव सागरदत्तं सत्थवाहं आपुच्छइ, जाव गोवालियाणं अंतिए पव्वइया। तए णं सा सूमालिया अजा जाया ईरियासमिया जाव बंभयारिणी बहूहिं चउत्थछट्ठट्ठम जाव विहरइ।
आर्याओं ने उसी प्रकार-सुव्रता की आर्याओं के समान-उत्तर दिया। अर्थात् उन्होंने कहा कि ऐसी बात सुनना भी हमें नहीं कल्पता तो फिर उपदेश करने–इष्ट होने का उपाय बताने की तो बात ही दूर रही। तब वह उसी प्रकार (पोट्टिला की भाँति) श्राविका हो गई। उसने उसी प्रकार दीक्षा अंगीकार करने का विचार किया
और उसी प्रकार सागरदत्त सार्थवाह से दीक्षा की आज्ञा ली। यावत् वह गोपालिका आर्या के निकट दीक्षित हुई। तत्पश्चात् वह सुकुमालिका आर्या हो गई। ईर्यासमिति से सम्पन्न यावत् ब्रह्मचारिणी हुई और बहुत-से उपवास, बेला, तेला आदि की तपस्या करती हुई विचरने लगी।
६९-तए णं सा सूमालिया अजा अन्नया कयाइजेणेव गोवालियाओ अजाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'इच्छामि णं अजाओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी चंपाओ बहिं सुभूमिभागस्स उजाणस्स अदूरसामंते छट्ठछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुही आयावेमाणी विहरित्तए।'
.. तत्पश्चात् सुकुमालिका आर्या किसी समय, एक बार गोपालिका आर्या के पास गई। जाकर उन्हें वन्दन किया, नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार कहा-'हे आर्या (गुरुणीजी)! मैं आपकी आज्ञा पाकर चंपा नगरी से बाहर, सुभूमिभाग उद्यान से न बहुत दूर और न बहुत समीप के भाग में बेले-बेले का निरन्तर तप करके, सूर्य के सम्मुख आतापना लेती हुई विचरना चाहती हूँ।
____७०-तए णं ताओ गोवालियाओ अजाओ सूमालियं एवं वयासी-'अम्हे णं अज्जे! समणीओ निग्गंथीओ ईरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ, नो खलु अम्हं कप्पइ बहिया गामस्स सन्निवेसस्स वा छटुंछट्टेणं जाव [ अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुहीणं आयावेमाणीणं] विहरित्तए। कप्पइणं अम्हं अंतो उवस्सयस्स वइपरिक्खित्तस्त संघाडिपडिबद्धियाए णं समतलपइयाए आयावित्तए।'