Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[३१५
ग्यारहवाँ अध्ययन : दावद्रव]
[३१५ के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से सहन करता है, उस पुरुष को मैंने सर्वाराधक कहा है।
इस प्रकार हे गौतम ! जीव आराधक और विराधक होते हैं।
१४-एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं एक्कारसमस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि।
श्री सुधर्मा स्वामी अपने उत्तर का उपसंहार करते हुए कहते हैं -इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर ने ग्यारहवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है। जैसा मैंने सुना, वैसा ही कहता हूँ।
विवेचन-इस अध्ययन में कथित दावद्रव वृक्षों के समान साधु हैं। द्वीप की वायु के समान स्वपक्षी साधु आदि के वचन, समुद्री वायु के समान अन्यतीर्थिकों के वचन और पुष्प-फल आदि के समान मोक्षमार्ग की आराधना समझना चाहिये।
जैसे द्वीप की वायु संसर्ग से वृक्षों की समृद्धि बताई, उसी प्रकार साधर्मी के दुर्वचन सहने से मोक्षमार्ग की आराधना और दुर्वचन न सहने से विराधना समझनी चाहिये। अन्यतीर्थिकों के दुर्वचन न सहन करने से मोक्षमार्ग की अल्प-विराधना होती है। जैसे समुद्री वायु से पुष्प आदि की थोड़ी समृद्धि और बहुत असमृद्धि बताई, उसी प्रकार परतीर्थिकों के दुर्वचन सहन करने और स्वपक्ष के सहन न करने से थोड़ी आराधना और बहुत विराधना होती है। दोनों के दुर्वचन सहन न करके क्रोध आदि करने से सर्वथा विराधना और सहन करने से सर्वथा आराधना होती है। अतएव साधु को सभी दुर्वचन क्षमाभाव से सहन करने चाहिए।
॥ग्यारहवां अध्ययन समाप्त॥