Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बारहवाँ अध्ययन : उदकज्ञात ]
स्थिर रहता है । सम्यग्दृष्टि जीव की यह व्यावहारिक कसौटी है ।
१० - तए णं से जियसत्तू अण्णया कयाइ पहाए आसखंधवरगए महया भडचडगरपह० आसवाहणियाए निज्जायमाणे तस्स फरिहोदगस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ ।
तणं. जियसत्तू राया तस्स फरिहोदगस्स असुभेणं गंधेणं अभिभूए समाणे सएणं उत्तरिज्जेण आसगं पिहेइ, एगंतं अवक्कमइ, ते बहवे ईसर जाव पभिइओ एवं वयासी - 'अहो णं देवाणुप्पिया! इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं गंधेणं रसेणं फासेणं । से जहानामए अहिम इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेण पण्णत्ते ।'
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तत्पश्चात् एक बार किसी समय जितशत्रु स्नान करके, (विभूषित होकर) उत्तम अश्व की पीठ पर सवार होकर, बहुत-से भटों-सुभटों के साथ, घुड़सवारी के लिए निकला और उसी खाई के पानी के पास पहुँचा ।
तब जितशत्रु राजा ने खाई के पानी की अशुभ गन्ध से घबराकर अपने उत्तरीय वस्त्र से मुँह ढँक लिया । वह एक तरफ चला गया और साथी राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह वगैरह से इस प्रकार कहने लगा'अहो देवानुप्रियो ! यह खाई का पानी वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से अमनोज्ञ - अत्यन्त अशुभ है । जैसे किसी सर्प का मृत कलेवर हो, यावत् उससे भी अधिक अमनोज्ञ है, अमनोज्ञ गन्ध वाला है।'
११ - तए णं ते बहवे राईसर जाव सत्थवाहपभिइओ एवं वयासी - तहेव णं तं सामी ! जंणं तुब्भे वयह, अहो णं इमे फरिहोदए अमणुण्णे वण्णेणं गंधेणं रसेणं फासेणं, से जहानामए अहिमडे इ वा जाव अमणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ।
तत्पश्चात् वे राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि इस प्रकार बोले- स्वामिन्! आप जो ऐसा कहते हैं सो सत्य ही है कि - अहो ! यह खाई का पानी वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से अमनोज्ञ है। यह ऐसा अमनोज्ञ है, जैसे साँप आदि का मृतक कलेवर हो, यावत् उससे भी अधिक अतीव अमनोज्ञ गन्ध वाला है।
१२ - तए णं से जियसत्तू सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी - 'अहो णं सुबुद्धी ! इसे फरिहोदए अणुणे adj से जहानामए अहिमडे इ वा जाव अमणामराए चेव गंधेणं पण्णत्ते ।'
तणं सुबुद्धी अमच्चे जाव तुसिणीए संचिट्ठा ।
तत्पश्चात् अर्थात् राजा, ईश्वर आदि ने जब जितशत्रु की हाँ में हाँ मिला दी, जब राजा जितशत्रु ने सुबुद्धि अमात्य से इस प्रकार कहा - 'अहो सुबुद्धि ! यह खाई का पानी वर्ण आदि से अमनोज्ञ है, जैसे किसी सर्प आदि का मृत कलेवर हो, यावत् उससे भी अधिक अत्यन्त अमनोज्ञ गंध वाला है।'
तब सुबुद्धि अमात्य इस कथन का समर्थन न करता हुआ मौन रहा ।
१३ - तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्चं दोच्चं पि तच्छं पि एवं वयासी – 'अहो णं तं चेव ।'
तणं से सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रण्णा दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे एवं वयासी - 'नो खलु सामी ! अम्हं एयंसि फरिहोदयंसि केइ विम्हए। एवं खलु सामी ! सुब्भिसद्दा वि पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, तं चेव जाव पओग-वीससापरिणया वि य णं सामी ! पोग्गला