Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौदहवां अध्ययन : तेतलिपुत्र]
[३६९ ४१-तए ण ते ईसरपभिइओ कणगज्झयं कुमारं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंञ्चन्ति।तए णं से कणगज्झए कुमारे राया जाए, महया हिमवंत-महन्त-मलय-मंदर-महिंदसारे, वण्णओ, जावरजं पसासेमाणे विहरइ।तएणंसा पउमावई देवी कणगज्झयं रायंसहावेइ सदावित्ता एवं वयासी-एस णं पुत्ता! तव रजे य जाव [रटे य बले य वाहणे ये कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य] अंतउरे य तुमंच तेयलिपुत्तस्स पहावेणं, तं तुमंणं तेयलिपुत्तं अमच्चं आढाहि, परिजाणाहि, सक्कारेहि, सम्माणेहि, इंतं अब्भुढेहि ठियं पज्जुवासाहि, वच्चंतं पडिसंसाहेहि, अद्धासणेणं उवनिमंतेहि, भोगं च से अणुवड्ढेहि।
तत्पश्चात् उन ईश्वर आदि ने कनकध्वज कुमार का महान्-महान् राज्याभिषेक किया। अब कनकध्वज कुमार राजा हो गया, महाहिमवान् और मलय पर्वत के समान इत्यादि राजा का वर्णन (औपपातिक सूत्र के अनुसार) यहाँ कहना चाहिए। यावत् वह राज्य का पालन करता हुआ विचरने लगा।
__उस समय पद्मावती देवी ने कनकध्वज राजा को बुलाया और बुलाकर कहा-पुत्र! तुम्हारा यह राज्य यावत् (राष्ट्र, बल-सैन्य, वाहन-हस्ती अश्व आदि, कोष, कोठार, पुर और) अन्तःपुर तुम्हें तेतलिपुत्र की कृपा से प्राप्त हुए हैं। यहाँ तक कि स्वयं तू भी तेतलिपुत्र के ही प्रभाव से राजा बना है। अतएव तू तेतलिपुत्र अमात्य का आदर करना, उन्हें अपना हितैषी जानना, उनका सत्कार करना, सम्मान करना, उन्हें आते देख कर खड़े होना, आकर खड़े होने पर उनकी उपासना करना, उनके जाने पर पीछे-पीछे जाना, बोलने पर वचनों की प्रशंसा करना, उन्हें आधे आसन पर बिठलाना और उनके भोग की (वेतन तथा जागीर आदि की) वृद्धि करना।
४२-तएणं से कणगझए पउमावईए देवीए तह त्ति पडिसुणेइ, जाव' भोगचसेवड्ढेइ।
तत्पश्चात् कनकध्वज ने पद्मावती देवी के कथन को बहुत अच्छा कहकर अंगीकार किया। यावत् वह पद्मावती के आदेशानुसार तेतलिपुत्र का सत्कार-सम्मान करने लगा। उसने उसके भोग (वेतन-जागीर आदि) की वृद्धि कर दी।
४३-तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं अभिक्खणं केवलिपन्नत्ते धम्मे संबोहेइ, नो चेव णं से तेयलिपुत्ते संबुज्झइ। तए णं तस्स पोट्टिलदेवस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था- 'एवं खलु कणगज्झए राया तेयलिपुत्तं आढाइ, जाव भोगं च संवड्डेइ तए णं से तेयलिपुत्तं अभिक्खणं अभिक्खणं संबोहिज्जमाणे वि धम्मे नो संबुज्झइ, तं सेयं खलु कणगज्झयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कणगज्झयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामेइ।
उधर पोट्टिल देव ने तेतलिपुत्र को बार-बार केवलि-प्ररूपित धर्म का प्रतिबोध दिया परन्तु तेतलिपुत्र को प्रतिबोध हुआ ही नहीं। तब पोट्टिल देव को इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ— 'कनकध्वज राजा तेतलिपुत्र का आदर करता है, यावत् उसका भोग बढ़ा दिया है, इस कारण तेतलिपुत्र बार-बार प्रतिबोध देने पर भी धर्म में प्रतिबुद्ध नहीं होता। अतएव यह उचित होगा कि कनकध्वज को तेतलिपुत्र
१. अ. १४ सूत्र ४१