Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा
से विरुद्ध (विमुख) कर दिया जाय।' देव ने ऐसा विचार किया और कनकध्वज को तेतलिपुत्र से विरुद्ध कर दिया।
४४-तए णं तेयलिपुत्ते कल्लं बहाए जाव [कयबलिकम्मे कयकोउ-मंगल-] पायच्छित्ते आसखंधवरगए बहूहिं पुरिसेहिं संपरिवुडे साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कणगज्झए राया तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तदनन्तर तेतलिपुत्र दूसरे दिन स्नान करके, यावत् (बलिकर्म एवं अमंगल-निवारण के लिए कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त करके) श्रेष्ठ अश्व की पीठ पर सवार होकर और बहुत-से पुरुषों से परिवृत होकर अपने घर से निकला। निकल कर जहाँ कनकध्वज राजा था, उसी ओर रवाना हुआ।
___४५-तए णं तेयलिपुत्तं अमच्चं से जहा बहवे राईसरतलवर जाव [माडंविय-कोथुविय इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-] पभिइओ पासंति, ते तहेव आढायंति, परिजाणंति, अब्भुटुंति, अब्भुट्टित्ता अंजलिपरिग्गहं करेंति, करित्ता इट्ठाहिं कंताहिं जाव [पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं] वग्गूहिं आलवेमाणा संलवेमाणा य पुरतो च पिट्ठतो पासतो य मग्गतो य समणुगच्छंति।
तत्पश्चात् तेतलिपुत्र अमात्य को (मार्ग में) जो-जो बहुत-से राजा, ईश्वर, तलवर, (माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी सेनापति, सार्थवाह) आदि देखते, वे उसी तरह अर्थात् सदैव की भांति उसका आदर करते, उसे हितकारक जानते और खड़े होते। खड़े होकर हाथ जोड़ते और हाथ जोड़कर इष्ट, कान्त, यावत् (प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर) वाणी से बोलते और बार-बार बोलते। वे सब उसके आगे, पीछे और अगलबगल में अनुसरण करके चलते थे।
४६-तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव कणगज्झए तेणेव उवागच्छइ। तए णं कणगज्झए तेयलिपुत्तं एजमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ, नो परियाणाइ, नो अब्भुढेइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे अणब्भुट्ठायमाणे परम्मुहे संचिट्ठइ।
तए णं तेयलिपुत्ते अमच्चे कणगज्झयस्स रण्णो अंजलिं करेइ। तओ यणं कणगज्झए राया अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे अणब्भुढेमाणे तुसिणीए परम्मुहे संचिट्ठइ।
तए णं तेयलिपुत्ते कणगझयं विप्परिणयं जाणित्ता भीए जाव[ तत्थे तसिए उव्विग्गे] संजायभए एवं वयासी-'रुटेणं मम कणगज्झए राया, हीणेणं मम कणगज्झए राया, अवज्झाए णं कणगज्झए राया।तं ण णज्जइणं मम केणइ कु-मारेण मारेहि'त्ति कटु भीए तत्थे य जाव सणियं सणियं पच्चोसक्केइ, पच्चोसक्कित्ता तमेव आसखंधं दुरूहेइ, दुरूहित्ता तेतलिपुरं मझमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तत्पश्चात् वह तेतलिपुत्र जहाँ कनकध्वज राजा था, वहाँ आया। कनकध्वज ने तेतलिपुत्र को आते देखा, मगर देख कर उसका आदर नहीं किया, उसे हितैषी नहीं जाना, खड़ा नहीं हुआ, बल्कि आदर न करता हुआ, न जानता हुआ और खड़ा न होता हुआ पराङ्मुख (पीठ फेर कर) बैठा रहा।
तब तेतलिपुत्र ने कनकध्वज राजा को हाथ जोड़े। तब भी वह उसका आदर नहीं करता हुआ बिमुख होकर बैठा ही रहा।