Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र ]
[ ३७१
तब तेतलिपुत्र कनकध्वज को अपने से विपरीत हुआ जानकर भयभीत हो गया। उसके हृदय खूब भय उत्पन्न हो गया । वह इस प्रकार बोला - मन ही मन कहने लगा- 'कनकध्वज राजा मुझसे रुष्ट हो गया है, कनकध्वज राजा मुझ पर हीन हो गया है, कनकध्वज राजा ने मेरा बुरा सोचा है। सो न मालूम यह मुझे किस बुरी मौत से मारेगा।' इस प्रकार विचार करके वह डर गया, त्रास को प्राप्त हुआ, घबराया और धीरे-धीरे वहाँ से खिसक गया। खिसक कर उसी अश्व की पीठ पर सवार हुआ । सवार होकर तेतलिपुर के मध्यभाग में होकर अपने घर की तरफ रवाना हुआ।
४७ - तए णं तेयलिपुत्तं जे जहा ईसर जाव पासंति ते तहा नो आढायंति, नो परियाणंति, नो अब्भुट्ठेति, नो अंजलिपरिग्गयं करेंति, इट्ठाहिं जाव णो संलवंति, नो पुरओ य पट्टिओ य पासओ यमग्गओ य समणुगच्छंति ।
तणं तेयलिपुत्ते जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ । जा वि य से बाहिरिया परिसा भवइ, तंजहा - दासे इ वा, पेसे इ वा, भाइल्लए इ वा, सा वि य णं नो आढाइ, नो परियाणाई, नो अब्भु । जाविय से अब्भितरिया परिसा भवइ, तंजहा - पिया इ वा माया इ वा जाव भाया इ वा भरिणी इ वा भज्जा इ वा पुत्ता इ वा धूया इ वा सुण्हा इ वा, सा वि य णं नो आढाइ, नो परियाणाइ, नो अब्भुट्ठेइ |
तत्पश्चात् तेतलिपुत्र को वे ईश्वर आदि देखते हैं, किन्तु वे पहले की तरह उसका आदर नहीं करते, उसे नहीं जानते, सामने नहीं खड़े होते, हाथ नहीं जोड़ते और इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोहर वाणी से बात नहीं करते। आगे पीछे और अगल-बगल में उसके साथ नहीं चलते।
तब तेतलिपुत्र जिधर अपना घर था, उधर आया । घर आने पर बाहर की जो परिषद् होती है, जैसे कि दास, प्रेष्य ( बाहर जाने-आने का काम करने वाले) तथा भागीदार आदि; उस बाहर की परिषद् ने भी उसका आदर नहीं किया, उसे नहीं जाना और न खड़ी हुई और जो आभ्यन्तर परिषद् होती है, जैसे कि माता, पिता, भाई, बहिन, पत्नी, पुत्र, पुत्रवधू आदि; उसने भी उसका आदर नहीं किया, उसे नहीं जाना और न उठ खड़ी हुई ।
आत्मघात का प्रयत्न
४८ - तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव वासघरे, जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिज्जंसि णिसीयइ, णिसीइत्ता एवं वयासी - ' एवं खलु अहं सयाओ गिहाओ निग्गच्छामि, तं चेव जाव अब्भितरिया परिसा नो आढाइ, नो परियाणाइ, नो अब्भुट्ठेइ, तं सेयं खलु मम अप्पाणं जीवियाओ ववरोवित्तए, त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तालउडं विसं आसगंसि पक्खिवइ, से य विसे णो संकमइ ।
तसे तेयलिपुत्ते नीलुप्पल जाव गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं खंघे ओहरड़, तत्थ वि य से धारा ओपल्ला ।
तसे तेयलिपुत्ते जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता पासगं गीवाए .बंधइ, बंधित्ता रुक्खं दुरूहइ, दुरूहित्ता पासं रुक्खे बंधइ, बंधित्ता अप्पाणं मुयइ, तत्थ वि य से