Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी]
[३९१ . ७-तं जइ णं ममं जाउयाओ जाणिस्संति, तो णं मम खिंसिस्संति, तं जाव ताव ममं जाउयाओ णं जाणंति, ताव मम सेयं एयं सालइयं तित्तालाउं बहुसंभारनेहकडं एगते गोवेत्तए, अन्नं सालइअंमहुरालाउयं जाव नेहावगाढं उवक्खडेत्तए। एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तं सालइयं जाव गोवेइ, अन्नं सालइयं महुरालाउयं उवक्खडेइ।
सो यदि मेरी देवरानियाँ यह वृत्तान्त जानेंगी तो मेरी निन्दा करेंगी। अतएव जब तक मेरी देवरानियाँ न जान पाए तब तक मेरे लिए यही उचित होगा कि इस शरद्ऋतु सम्बन्धी, बहुत मसालेदार और स्नेह (तेल) से युक्त कटुक तुंबे को किसी जगह छिपा दिया जाय और दूसरा शरद्ऋतु सम्बन्धी या सारयुक्त मीठा तुंबा मसाले डाल कर और बहुत-से तेल से छौंक कर तैयार किया जाय। नागश्री ने इस प्रकार विचार किया। विचार करके उस कटुक शरद्ऋतु सम्बन्धी तूंबे को यावत् छिपा दिया और मीठा तुंबा तैयार किया।
८-उवक्खडेता तेसिंमाहणाणं ण्हायाणंजाव सुहासणवरगयाणं तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिवेसइ।तए णं ते माहणा जिमियभुत्तुत्तरागया समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था।तएणंताओमाहणीओण्हायाओताव विभूसियाओतं विपुलं असणं पाणंखाइमं साइमं आहारेंति, आहारित्ता जेणेवसयाइंगेहाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ताओ जायाओ।
___तत्पश्चात् वे ब्राह्मण स्नान करके यावत् सुखासन पर बैठे। उन्हें वह प्रचुर अशन, पान, खादिम और स्वादिम परोसा गया। वे ब्राह्मण भोजन कर चुकने के पश्चात् आचमन करके स्वच्छ होकर और परम शुचि होकर अपने-अपने काम में संलग्न हो गए। तत्पश्चात् स्नान की हुई और विभूषित हुई उन ब्राह्मणियों ने विपुल, अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार जीमा। जीमकर वे अपने-अपने घर चली गईं। जाकर वे भी अपने-अपने काम में लग गईं। स्थविर-आगमन
९-तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा जाव बहुपरिवारा जेणेव चंपा णामं नयरी, जेणेव सुभूमिभागे उजाणे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवंजाव [ओग्गहं
ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा] विहरंति।परिसा निग्गया।धम्मे कहिओ।परिसा पडिगया।
उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर यावत् बहुत बड़े परिवार के साथ चम्पा नामक नगरी के सुभूमिभाग उद्यान में पधारे। पधार कर साधु के योग्य उपाश्रय की याचना करके, यावत् [संयम और तप से आत्मा को भावित करते] विचरने लगे। उन्हें वन्दना करने के लिए परिषद् निकली। स्थविर मुनिराज ने धर्म का उपदेश दिया। उपदेश सुन कर परिषद् वापिस चली गई। धर्मरुचि अनगार का भिक्षार्थ गमन
१०–तए णं तेसिं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी धम्मरुई नाम अणगारे ओराले जाव [घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउल ] तेउलेस्से मासंमासेणं खममाणे विहरइ। तए णं से धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं