Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा
इस प्रकार विचार करके, दूसरे दिन प्रभात होने पर [एवं सहस्ररश्मि दिवाकर के तेज से जाज्वल्यमान होने पर] पोषध पारा। पोषध पार कर स्नान किया, बलिकर्म किया, फिर मित्र ज्ञाति आदि से यावत् परिवृत होकर बहुमूल्य और राजा के योग्य उपहार लिया और श्रेणिक राजा के पास पहुँचा। उपहार राजा के समक्ष रखा और इस प्रकार कहा-'स्वामिन् ! आपकी अनुमति पाकर राजगृह नगर के बाहर यावत् पुष्करिणी खुदवाना चाहता हूँ।'
राजा ने उत्तर दिया-'जैसे सुख उपजे, वैसा करो।' पुष्करिणी-वर्णन
१२- तएणंणंदे सेणिएणं रण्णा अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठ-तुटू रायगिहं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गछित्ता वत्थुपाढयरोइयंसि भूमिभागंसि णंदं पोक्खरिणिं खणाविउं पयत्ते यावि
होत्था।
तएणं साणंदा पोक्खरिणी अणुपुव्वेणं खणमाणा' खणमाणा पोक्खरिणी जाया यावि होत्था-चाउक्कोणा, समतीरा, अणुपुव्वसुजायवप्पसीयलजला, संछण्णपत्त-विस-मुणाला बहुप्पल-पउम-कुमुद-नलिणी-सुभग-सोगंधिय-पुंडरीय-महापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्तपफुल्लकेसरोववेया परिहत्थ-भमंत-मत्तछप्पय-अणेग-सउणगण-मिहुण-वियरिय-सदुन्नइयमहुरसरनाइया पासाईया दरिसणिजा अभिरूवा पडिरूवा।
तत्पश्चात् नन्द मणिकार सेठ श्रेणिक राजा से आज्ञा प्राप्त करके हृष्ट-तुष्ट हुआ। वह राजगृह नगर के बीचों-बीच होकर निकला। निकलकर वास्तुशास्त्र के पाठकों (शिल्पशास्त्र के ज्ञाताओं) द्वारा पसंद किए हुए भूमिभाग में नंदा नामक पुष्करिणी खुदवाने में प्रवृत्त हो गया-उसने पुष्करिणी का खनन कार्य आरम्भ करवा दिया।
तत्पश्चात् नंदा पुष्कारिणी अनुक्रम से खुदती-खुदती चतुष्कोण और समान किनारों वाली पूरी पुष्करिणी हो गई। अनुक्रम से उसके चारों ओर घूमा हुआ परकोटा बन गया, उसका जल शीतल हुआ। जल पत्तों, बिसतंतुओं और मृणालों से आच्छादित हो गया। वह वापी बहुत-से खिले हुए उत्पल (कमल), पद्म (सूर्यविकासी कमल), कुमुद (चन्द्रविकासी कमल), नलिनी (कमलिनी-सुन्दर कमल), सुभग जातिय कमल, सौंगंधिक कमल, पुण्डरीक (श्वेत कमल), महापुण्डरीक, शतपत्र (सौ पंखुड़ियों वाले) कमल की सहस्रपत्र (हजार पंखुड़ियों वाले) कमल की केसर से युक्त हुई। परिहत्थ नामक जल-जन्तुओं, भ्रमण करते हुए मदोन्मत्त भ्रमरों और अनेक पक्षियों के युगलों द्वारा किए हुए शब्दों से उन्नत और मधुर स्वर से वह पुष्करिणी गूंजने लगी। वह सबके मन को प्रसन्न करने वाली दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो गई। वनखण्डों का निर्माण
१३-तए णं से णंदे मणियारसेट्ठी णंदाए पोक्खरिणीए चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडे रोवावेइ। तए णं ते वणसंडा अणुपुव्वेणं सारक्खिजमाणा य संगोविजमाणा य संवड्डियमाणा य वणसंडा जाया-किण्हा जाव' निकुरंबभूया पत्तिया पुप्फिया जाव [फलिया १. पाठान्तर-खम्ममाणा खम्ममाणा। २. अ. ७ सूत्र. ११