Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
३५२]
[ ज्ञाताधर्मकथा
मगर सांध्वियों का ऐसी बातों से क्या सरोकार ! पोट्टिला का कथन सुनते ही उन्होंने हाथों से अपने कान ढक लिए। कहा—‘देवानुप्रिये ! हम ब्रह्मचारिणी साध्वियाँ हैं। हमारे लिए ऐसी बातें सुनना भी निषिद्ध है। चाहो तो सर्वज्ञप्ररूपित धर्म सुन सकती हो।'
पोट्टिला ने धर्मोपदेश सुना और श्राविकाधर्म अंगीकार कर लिया। इससे उसे नूतन जीवन मिला। उसके संताप का किंचित् शमन हुआ। उसे ऐसी शान्ति की अनुभूति होने लगी जैसी पहले कभी नहीं हुई थी। उसके अन्तरात्मा में धर्म के प्रति रस उत्पन्न हो गया। तब उसने सर्वविरति संयम अंगीकार करने का संकल्प कर लिया ।
तेतलिपुत्र के पास उसने अपनी अभिलाषा व्यक्त की और अनुमति माँगी तो तेतलिपुत्र ने कहा'तुम संयम स्वीकार करोगी तो आगामी भव में अवश्य किसी देवलोक में उत्पन्न होओगी। वहाँ से आकर यदि मुझे प्रतिबोध देना स्वीकार करो तो मैं अनुमति देता हूँ, अन्यथा नहीं।' पोट्टिला ने तेतलिपुत्र की शर्त स्वीकार कर ली और वह दीक्षित हो गई। संयम पालन कर आयुष्य पूर्ण होने पर देवलोक में देवता के रूप में उत्पन्न
हुई।
प्रारम्भ में कनकरथ राजा का उल्लेख किया गया है। यह राजा राज्य में अत्यन्त गृद्ध और सत्तालोलुप था। कोई मेरा पुत्र वयस्क होकर मेरा राज्य न हथिया ले, इस भय से प्रेरित होकर वह अपने प्रत्येक पुत्र को जन्मते ही विकलांग कर दिया करता था । उसकी यह लोलुपता और क्रूरता देख रानी पद्मावती को गहरी चिन्ता और व्यथा हुई। वह जब गर्भवती थी तब उसने अमात्य तेतलिपुत्र को गुप्त रूप से अन्तःपुर में बुलवाया और होने वाले पुत्र की सुरक्षा के लिए मंत्रणा की। निश्चित हो गया कि यदि होने वाली सन्तान पुत्र हो तो राजा को उसका पता न लगने पाए और तेतलिपुत्र के घर पर गुप्त रूप में उसका पालन-पोषण किया जाए।
संयोगवश जिस समय रानी पद्मावती ने पुत्र प्रसव किया, उसी समय तेतलिपुत्र की पत्नी ने मृत कन्या को जन्म दिया। पूर्वकृत निश्चय के अनुसार तेतलिपुत्र ने पुत्र और पुत्री की अदलाबदली कर दी। मृत पुत्री को पद्मावती के पास और राजकुमार को अपनी पत्नी के पास ले आया । पत्नी को सब रहस्य बतला दिया। कुमार सुरक्षित वृद्धिंगत होने लगा ।
कनकरथ राजा की जब मृत्यु हुई तो उसके उत्तराधिकारी की चर्चा चली । तेतलिपुत्र ने समग्र रहस्य प्रकट कर दिया और राजकुमार - जिसका नाम कनकध्वज था - राजसिंहासन पर आसीन हो गया ।
रानी पद्मावती का मनोरथ सफल हुआ। उससे कनकध्वज को आदेश दिया - तेतलिपुत्र के प्रति सदैव विनम्र रहना, उनका सत्कार-सम्मान करना, राजसिंहासन, वैभव, यहाँ तक कि तुम्हारा जीवन इन्हीं की बदौलत है। कनकध्वज ने माता के आदेश को शिरोधार्य किया और वह अमात्य का बहुत आदर करने लगा।
उधर पोट्टिल देव ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तेतलिपुत्र को प्रतिबुद्ध करने के अनेक उपाय किए, मगर राजा द्वारा सम्मानित होने के कारण उसे प्रतिबोध नहीं हुआ। तब देव ने अन्तिम उपाय किया- राजा आदि को उससे विरुद्ध कर दिया। एक दिन जब वह राजसभा में गया तो राजा ने उससे बात भी नहीं की, विमुख होकर बैठ गया, सत्कार-सम्मान करने की तो बात ही दूर !