Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र]
[३५३ तेतलिपुत्र यह अभिनव व्यवहार देखकर भयभीत होकर वापिस घर लौट आया। मार्ग में और घर में आने पर परिवारजनों ने भी उसे किंचित् आदर नहीं दिया। सारी परिस्थिति बदली देख तेतलिपुत्र ने आत्मघात करने का निश्चय किया। आत्मघात के लगभग सभी उपाय आजमा लिये, मगर दैवी माया के कारण कोई भी कारगर न हुआ। उन उपायों का मूलपाठ में ब्यौरेवार रोचक वर्णन किया गया है।
जब तेतलिपुत्र आत्महत्या करने में भी असफल हो गया-पूर्ण रूप से निराश हो गया तब पोट्टिल देव प्रकट हुआ। उसने अत्यन्त सारपूर्ण शब्दों में उसे प्रतिबोध दिया। देव का वह कथन भी अत्यन्त रोचक है, उसे मूलपाठ से पाठक जान लें।
उसी समय तेतलिपुत्र को शुभ अध्यवसाय के प्रभाव से जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हो गया। उसे विदित हो गया कि पूर्व जन्म में वह महाविदेह क्षेत्र में महापद्म नामक राजा था। संयम अंगीकार करके वह यथाकाल शरीर त्याग कर महाशुक्र नामक देवलोक में उत्पन्न हुआ था। तत्पश्चात् वह यहाँ जन्मा।
तेतलिपुत्र ने मानो नूतन जगत् में प्रवेश किया। थोड़ी देर पहले जिसके चहुँ ओर घोर अन्धकार व्याप्त था, अब अलौकिक प्रकाश की उज्ज्वल रश्मियाँ भासित होने लगीं। वह स्वयं दीक्षित होकर, संयम का यथाविधि पालन करके, अन्त में इस भव-प्रपंच से सदा-सदा के लिए मुक्त हो गया। अनन्त, असीम, अव्याबाध आत्मिक सुख का भागी बन गया।