Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा तए णं सा अम्मधाई तह त्ति परिसुणेइ, पडिसुणित्ता अंतेउरस्स अवद्दारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव तेयलिपुत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव' एवं वयासी'एवं खलु देवाणुप्पिया! पउमावई देवी सद्दावेइ।' ।
उस समय पद्मावती देवी ने अपनी धायमाता को बुलाया और कहा–'माँ, तुम तेतलिपुत्र के घर जाओ और तेतलिपुत्र को गुप्त रूप से बुला लाओ।'
तब धायमाता ने बहुत अच्छा' इस प्रकार कह कर पद्मावती का आदेश स्वीकार किया। स्वीकार करके वह अन्तःपुर के पिछले द्वार से निकल कर तेतलिपुत्र के घर पहुंची। वहाँ पहुँच कर दोनों हाथ जोड़ कर (मस्तक पर अंजलि करके) उसने यावत् इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय! आप को पद्मावती देवी ने बुलाया है।'
२०-तएणं तेयलिपुत्ते अम्मधाईए अंतियं एयमटुं सोच्चा णिसम्म हट्ठ-तुट्टे अम्मधाईए सद्धिं साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता अंतेउरस्स अवदारेण रहस्सियं चेव अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव एवं वयासी-'संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! जं मए कायव्वं।'
तत्पश्चात् तेतलिपुत्र धायमाता से यह अर्थ सुनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट-तुष्ट होकर धायमाता के साथ अपने घर से निकला। निकल कर अन्त:पुर के पिछले द्वार से गुप्त रूप से उसने प्रवेश किया। प्रवेश करके जहाँ पद्मावती देवी थी, वहाँ आया। आकर दोनों हाथ जोड़कर (मस्तक पर अंजलि करके) बोला-'देवानुप्रिये! मुझे जो करना है, उसके लिए आज्ञा दीजिये।'
२१-तए णं पउमावई देवी तेयलिपुत्तं एवं वयासी-'एवं खलु कणगरहे राया जाव' वियंगेइ, अहं च णं देवाणुप्पिया! दारगं पयाया, तं तुमंणं देवाणुप्पिया! तंदारगं गिण्हाहि जाव तव मम य भिक्खाभायणे भविस्सइ, त्ति कटु तेयलिपुत्तस्स हत्थे दलयइ।
तएणं तेयलिपुत्ते पउमावईए हत्थाओ दारगंगेण्हइ, गेण्हित्ता उत्तरिजेणं पिहेइ, पिहित्ता अंतेउरस्स रहस्सियं अवदारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव पोट्टिला भारिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्टिलं एवं वयासी
तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने तेतलिपुत्र से इस प्रकार कहा-तुम्हें विदित ही है कि कनकरथ राजा यावत् [जन्मे हुए बालकों में से किसी के हाथ, किसी के कान आदि कटवाकर] सब पुत्रों को विकलांग कर देता है। 'हे देवानुप्रिय! मैंने बालक का प्रसव किया है। अतः तुम इस बालक को ग्रहण करो-संभालो। यावत् यह बालक तुम्हारे लिए और मेरे लिए भिक्षा का भाजन सिद्ध होगा।' ऐसा कहकर उसने वह बालक तेतलिपुत्र के हाथों में सौंप दिया।
तत्पश्चात् तेतलिपुत्र ने पद्मावती के हाथ से उस बालक को ग्रहण किया और अपने उत्तरीय वस्त्र से ढंक लिया। ढंक कर गुप्त रूप से अन्तःपुर के पिछले द्वार से बाहर निकल गया। निकल कर जहाँ अपना घर था और जहाँ पोट्टिला भार्या थी, वहाँ आया। आकर पोट्टिला से इस प्रकार कहा१. अ. १४ सूत्र ८. २. अ. १४ सूत्र १५. ३. अ. १४ सूत्र १७