Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र]
[३५९ सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए विहरित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी
तत्पश्चात्, पद्मावती देवी को एक बार मध्य रात्रि के समय इस प्रकार विचार उत्पन्न हुआ'कनकरथ राजा राज्य आदि में आसक्त होकर यावत् पुत्रों को विकलांग कर देता है, यावत् उनके अंग-अंग काट लेता है, तो यदि मेरे अब पुत्र उत्पन्न हो तो मेरे लिए यह श्रेयस्कर होगा कि उस पुत्र को मैं कनकरथ से छिपा कर पालूँ।' पद्मावती देवी ने ऐसा विचार किया और विचार करके तेतलिपुत्र अमात्य को बुलवाया। बुलवा कर उससे कहा
१७–'एवं खलु देवाणुप्पिया! कणगरहे राया रज्जे य जाव' वियंगेह, तंजइणं अहं देवाणुप्पिया! दारगं पयायामि, तए ण तुमं कणगरहस्स रहस्सियं चेव अणुपुव्वेण सारक्खमाणे संगोवेमाणे संवड्ढेहि, तएणंसेदारए उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुपत्ते तव यममय भिक्खाभायणे भविस्सइ।' तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे पउमावईएदेवीए एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता पडिगए।
'हे देवानुप्रिय! कनकरथ राजा राज्य और राष्ट्र आदि में अत्यन्त आसक्त होकर सब पुत्रों को अपंग कर देता है, अत: मैं यदि अब पुत्र को जन्म दूँ तो कनकरथ से छिपा कर ही अनुक्रम से उसका संरक्षण, संगोपन एवं संवर्धन करना। ऐसा करने से बालक बाल्यावस्था पार करके यौवन को प्राप्त होकर तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी भिक्षा का भाजन बनेगा, अर्थात् वह तुम्हारा हमारा पालन-पोषण करेगा।' तब तेतलिपुत्र अमात्य ने पद्मावती के इस अर्थ (कथन) को अंगीकार किया। अंगीकार करके वह वापिस लौट गया।
१८-तए णं पउमावई य देवी पोट्टिला य अमच्ची सममेव गब्भं गेहंति, सममेव गब्भं परिवहंति, सममेव गब्भं परिवड्डंति'। तए णं सा पउमावई देवी नवण्हं मासाणं पडिपुण्णाणं जाव पियदंसणं सुरूवं दारग पयाया।
जं रयणिं च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं रयणिं च पोट्टिला वि अमच्ची नवण्हं मासाणं पडिपुणाणं विणिहायमावन्नं दारियं पयाया।
तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने और पोट्टिला नामक अमात्यी (अमात्य की पत्नी) ने एक ही सार्थ गर्भ धारण किया, एक ही साथ गर्भ वहन किया और साथ-साथ ही गर्भ की वृद्धि की। तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने नौ मास [और साढ़े सात दिन] पूर्ण हो जाने पर देखने में प्रिय और सुन्दर रूप वाले पुत्र को जन्म दिया।
जिस रात्रि में पद्मावती देवी ने पुत्र को जन्म दिया, उसी रात्रि में पोट्टिला अमात्यपत्नी ने भी नौ मास [और साढ़े सात दिन] व्यतीत होने पर मरी हुई बालिका का प्रसव किया।
१९-तएणं सा पउमावई देवी अम्मधाइं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुमे अम्मो! तेयलिपुत्तगिहे, तेयलिपुत्तं रहस्सियं चेव सद्दावेह।' १. अ. १४ सूत्र १५ २. पाठान्तर-'सममेव गब्भं परिवड्ढंति' यह पाठ किसी-किसी प्रति में उपलब्ध नहीं है। ३. औप. सूत्र १४३.