Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा अर्थात्-तिर्यंचों में यद्यपि चारित्र (सर्वविरति) के होने का आगम में निषेध किया गया है, फिर भी बहुत-से तिर्यंचों ने महाव्रत ग्रहण किए ऐसा सुना जाता है-आगमों में ऐसा उल्लेख देखा जाता है। किन्तु महाव्रतों के सद्भाव में भी तिर्यंचों में चारित्र-परिणाम अर्थात् भाव चारित्र सम्भव नहीं है, जैसे बहुत गुणों से सम्पन्न जीवों को केवलज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता।
इस कथन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि केवल महाव्रतों का ग्रहण या पालन ही सर्वविरति चारित्र नहीं है। यह व्यवहार चारित्र मात्र है। निश्चय चारित्र के लिए परिणामों की विशिष्ट निर्मलता अनिवार्य है, जो अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण कषायों के क्षय आदि तथा संज्वलन कषाय की मन्दता के होने पर ही संभव है। देवपर्याय में जन्म
____३३-तएणं से ददुरे कालमासे कालं किच्चा जाव सोहम्मे कप्पे ददुरवडिंसए विमाणे उववायसभाए ददुरदेवत्ताए उववन्ने। एवं खलु गोयमा! ददुरेणं सा दिव्वा देविड्ढी लद्धा पत्ता जाव अभिसमन्नागया।
तत्पश्चात् वह मेंढ़क मृत्यु के समय काल करके, यावत सौधर्म कल्प में, दर्दुरावतंसक नामक विमान में, उपपातसभा में, दर्दुरदेव के रूप में उत्पन्न हुआ है। हे गौतम! दर्दुरदेव ने इस प्रकार वह दिव्य देवर्धि लब्ध की है, प्राप्त की है और पूर्णरूपेण प्राप्त की है-उसके समक्ष आई है। मंडूक देव का भविष्य
३४-ददुरस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णता?
गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।से णं ददुरे देवे आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं, अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, जाव [मुच्चिहिइ, परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं] अंतं करिहिइ।
गौतमस्वामी ने पुनः प्रश्न किया-दर्दुर देव की उस देवलोक में कितनी स्थिति है ?
भगवान् उत्तर देते हैं-गौतम! चार पल्योपम की स्थिति कही गई है। तत्पश्चात् वह दर्दुर देव आयु के क्षय से, भव के क्षय से और स्थिति के क्षय से तुरंत वहाँ से च्यवन करके महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, यावत् [मुक्त होगा, परिनिर्वाण प्राप्त करेगा और समस्त दुःखों का] अन्त करेगा। उपसंहार
३५-एवं खलु समणेणं भगवया महावीरेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, त्ति बेमि।
श्री सुधर्मा स्वामी अपने उत्तर का उपसंहार करते हुए कहते हैं-इस प्रकार निश्चत ही श्रमण भगवान् महावीर ने तेरहवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है। जैसा मैंने सुना वैसा कहता हूँ।
॥ तेरहवाँ अध्ययन समाप्त॥